Madhya Pradesh

बुंदेलखंडी शैली की मूर्तियों का करोड़ों रूपए के सोने-चांदी और हीरों से शृंगार, दशहरे के दिन विदा में रो पड़ते हैं लोग

करोड़ों रुपए के हीरे जवाहरात एवं सोने चांदी से लदी रहती हैं बुंदेलखंडी शैली की  दुर्गा प्रतिमाएं : सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं गार्ड

जबलपुर, 1 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । संस्कारधानी के इतिहास में विभिन्न परंपराओं से मां दुर्गा के पूजन का इतिहास सैकड़ो वर्ष पुराना है। शहर में लगभग 3000 से ज्यादा दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। जबलपुर के परंपरागत इतिहास में यहां बुंदेलखंड की परंपरा सर्वाधिक घुली मिली है। नवरात्रि में शहर की नगर जेठानी एवं नगर सेठानी के नाम से प्रसिद्ध मां दुर्गा की बुंदेलखंडी परंपरा शैली की प्रतिमाएं सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र रहती हैं।

◆ माँ के दरबार मे उमड़ पड़ती है जनमेदनी

यह प्रतिमाएं सराफा बाजार के सुनरहाई एवं नुनहाई क्षेत्र में स्थापित की जाती हैं। स्वर्णकार समाज द्वारा स्थापित यह प्रतिमाएं अपने आप में एक गौरवशाली इतिहास संजोय हैं। इन प्रतिमाओं के मुख्य आकर्षण होते हैं बुंदेलखंडी परंपरा के जेवर जिनमें करोड़ों रुपए के सोना, चांदी एवं हीरे जवाहरात शामिल हैं। लोग, खासकर जिनमें महिलाएं शामिल हैं, भगवती के पहने हुए इन परम्परागत जेवरों को देखने बड़ी संख्या में आती हैं। भीड़ इतनी की यातायात परिवर्तित करना पड़ता है।

◆ जवाहरातों के साथ सोने चांदी के जेवर है विशेषता

हम पहले बात करते हैं सुनरहाई दुर्गा उत्सव समिति में स्थापित नगर सेठानी के नाम से विख्यात मां दुर्गा की बुंदेलखंडी परंपरा की प्रतिमा की। यहां समिति के राजेश सराफ के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमा सन 1866 से सराफा बाजार के सुनरहाई क्षेत्र स्थापित की जा रही है। यह प्रतिमा करोड़ों रुपए के सोनी चांदी एवं हीरे जवाहरातों से सुसज्जित है। सबसे अनूठी बात यह है कि यह प्रतिमा बुंदेलखंडी परंपरा की होने के कारण जो स्वर्ण आभूषण पहने रहती हैं वह भी बुंदेलखंडी शैली के हैं, जो आजकल देखने नहीं मिलते। बड़ी संख्या में महिलाएं उनके दर्शनों को पहुंचती हैं। बताया जाता है कि यह प्रतिमा मक्खन तेली द्वारा स्थापित की गई थी। दशहरे में इस प्रतिमा को शहर के जुलूस में प्रथम नम्बर पर नेतृत्व करने का सौभाग्य है।

◆ 10 किलो सोने चांदी के जेवर पहनती है माँ की प्रतिमा

इसके बाद दूसरे नंबर पर आती है, सराफा बाजार के नुनहाई क्षेत्र में स्थापित नगर जेठानी के नाम से विख्यात मां दुर्गा की बुंदेलखंडी परंपरा की प्रतिमा। इस समिति के अध्यक्ष विनीत सोनी के अनुसार प्रतिमा की स्थापना 157 वर्ष पूर्व की गई थी। मां भगवती पूर्ण रूप से स्वर्ण,चांदी आभूषणों से सुसज्जित हैं। लगभग 10 किलो सोने के आभूषण एवं कई किलो चांदी के साथ हीरे जवाहरात मां के श्रृंगार में लगाएं जाते हैं। माँ दुर्गा की यह प्रतिमा 350 किलो चांदी से निर्मित रथ में भ्रमण करती है।

◆ नों दिन माँ को समर्पित व्यापार

इस प्रतिमा में भी वही खासियत है जो सुनरहाई दुर्गा उत्सव समिति की प्रतिमा में है। बुंदेली शैली के स्वर्ण आभूषण दोनों प्रतिमाओं में एक से देखने को मिलते हैं। नवरात्रि के दौरान सराफा का यह कारोबारी क्षेत्र 9 दिनों तक माता की भक्ति में डूब जाता है। समाज के व्यापारियों के अनुसार मां की भक्ति के चलते कारोबार में लोगों का ध्यान कम ही रहता है, इसलिए लगभग बाजार मन्द रहता है।

◆ दशहरे के दिन विदा में रो पड़ते हैं लोग

मां की अगवानी से लेकर विदाई तक इस क्षेत्र में अपने आप में अनूठी है। जब भगवती की प्रतिमाएं आती हैं तो सड़कों पर रंगोली से लेकर फूल बिछा दिए जाते हैं। इन प्रतिमाओं को लोग अपने क्षेत्र की बेटी भी मानते हैं, इसीलिए बड़े लाड प्यार से इनका आगमन से लेकर 9 दिन तक भक्ति की जाती है। जब दशहरे के दिन इनकी विदाई होती है तो लोग रो पड़ते हैं। वे इस विदाई को ऐसे करते हैं जैसे उनकी बेटी की विदाई हो रही हो। पहले यह प्रतिमाएं लोगों के कंधों पर जाती थी परंतु कालांतर में बदलाव के बाद अब यह रथों पर जाती हैं।

◆ मां की सुरक्षा में सशस्त्र बल रहता है तैनात

स्वर्ण आभूषणों से लदी हुई इन प्रतिमाओं की सुरक्षा के लिए जहां शस्त्रधारी पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं, तो वहीं निजी गनमैन भी मां की सुरक्षा के लिए लगाए जाते हैं। पुराने बुजुर्गों के अनुसार शहर में बुंदेलखंडी परंपरा की नौ बहने एक सी स्थापित की जाती हैं,जिनमें, सुनरहाई, नुनहाई, दरहाई, मलखम, कोष्टीमन्दिर आदि प्रमुख हैं।

—————

(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

Most Popular

To Top