बिलासपुर , 30 सितंबर (Udaipur Kiran News) ।छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर ने कहा कहा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों में सम्मानजनक मृत्यु और दाह संस्कार का अधिकार शामिल है।जब कोई व्यक्ति स्वर्ग सिधारता है, तो उसका शरीर सम्मानजनक विदाई का हकदार होता है। शव कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसका अमानवीय तरीके से निपटान किया जा सके। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम (अंत्येष्टि स्थल) में एक अंतिम संस्कार में शामिल होने गए थे, जहाँ मुक्तिधाम की स्थिति दयनीय पाई गई। अतः, उक्त स्थिति के कारण मामले का संज्ञान लिया और स्वतः संज्ञान लेकर यह जनहित याचिका दर्ज करना आवश्यक समझते हुए निर्देश दिए हैं।
मुक्तिधाम की दुर्दशा के मामले में उच्च न्यायालय ने सोमवार को पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार और जिला मजिस्ट्रेट/कलेक्टर, बिलासपुर को भी निर्देश दिया है। वहीं इस मुद्दे पर सभी प्रशासनिक अधिकारियों को अपने-अपने व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल करने और श्मशान घाटों की बेहतरी के संबंध में राज्य के रोडमैप या विजन के बारे में इस न्यायालय को सूचित करने का आदेश दिया है। इस मामले को 13 अक्टूबर, 2025 को सुनवाई होगी।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के श्मशान घाटों और अंत्येष्टि स्थलों की स्थिति में सुधार के लिए निर्देश दिए हैं। सोमवार को संज्ञान लेकर जारी आदेश में कोर्ट ने कहा है कि सम्मानजनक मृत्यु और दाह संस्कार का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों में शामिल है।
इस मामले को लेकर मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश विभु दत्त गुरु की युगलपीठ में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश ने जनहित याचिका में जिक्र किया कि, उन्होंने पाया कि उक्त मुक्तिधाम में न्यूनतम सुविधाएँ भी नहीं हैं। कोई चारदीवारी या बाड़ नहीं है जिससे यह पहचाना जा सके कि अंतिम संस्कार/दाह संस्कार या दफ़नाने का कार्य किस क्षेत्र या किस स्थान तक किया जा सकता है। यहाँ कोई पहुँच मार्ग नहीं है और यह रास्ता खाइयों से भरा है और इस बरसात के मौसम में यह पानी से भर गया था, जिससे लोगों के लिए अंतिम संस्कार स्थल तक पहुँचना एक थका देने वाला काम बन गया था। यह भी देखा गया कि यहाँ सफ़ाई का पूर्ण अभाव था क्योंकि दाह संस्कार से पहले और बाद में इस्तेमाल की गई चीज़ें, फेंके हुए कपड़े, पॉलीथीन बैग, शराब की बोतलें और अन्य अवांछित चीज़ें यहाँ-वहाँ पड़ी थीं और वहाँ एक भी कूड़ेदान नहीं था। मुक्तिधाम में कोई प्रकाश व्यवस्था नहीं है, आगंतुकों/शोक मनाने वालों के लिए कोई शेड नहीं है, बैठने की कोई सुविधा नहीं है और लोग हर मौसम में घंटों खुले आसमान के नीचे खड़े रहने को मजबूर हैं। यहाँ कोई अधिकृत व्यक्ति/देखभालकर्ता नहीं है जिससे किसी भी प्रकार की सहायता/सेवा के लिए संपर्क किया जा सके। कम से कम अधिकृत कर्मियों के मोबाइल नंबर दर्शाने वाला कोई साइनबोर्ड नहीं है। वहीं शौचालयों का अभाव है, इसके अलावा उक्त मुक्तिधाम में ठोस और गीले अपशिष्ट प्रबंधन शेड का होना, जो अत्यंत अनुचित है।
(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi
