
जन्मदिन पर लिया अनुकरणीय फैसला पत्नी सहित किया
देहदान, भाग्यश्री आश्रम में महिलाओं को करवाया भोजन
हिसार, 30 सितंबर (Udaipur Kiran News) । शहर के पानू दंपत्ति एडवोकेट नरेंद्र पानू एवं संतोष
पानू ने समाज के समक्ष एक अनुकरणीय एवं सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। एडवोकेट नरेंद्र
पानू ने अपने जन्मदिन पर अपनी देह को दान करने का फैसला लिया। उनके इस फैसले में उनका
साथ देते हुए एवं अनुसरण करते हुए उनकी धर्मपत्नी संतोष पानू ने भी उनके साथ ही देहदान
किया। महाराजा अग्रसेन कॉलेज अग्रोहा में दोनों ने देहदान के लिए फॉर्म भरने सहित अन्य
सभी औपचारिकताएं पूरी की।
एडवोकेट नरेंद्र पानू व संतोष पानू ने मंगलवार काे कहा कि यदि मृत्यु के बाद भी उनका शरीर
किसी काम आ सके तो यह उनके लिए बड़े सौभाग्य की बात की होगी। यदि मानवता की भलाई में
उनके शरीर का एक कतरा भी काम आ जाए तो उनका जीवन सफल हो जाएगा। मृत्यु के बाद शरीर
को जलाने से न केवल हमारा वातावरण प्रभावित एवं प्रदूषित होता है बल्कि गंगा नदी में
अस्थियां प्रवाहित करने से पवित्र गंगा नदी का जल भी दूषित होता है। इसलिए हमारे शरीर
पर शोध करके यदि विज्ञान से कोई नई खोज हो सके तो यह उनके जीवन के सफल होने जैसा होगा।
उन्होंने बताया कि उन्होंने यह निर्णय खुशी-खुशी लिया। वहीं एडवोकेट पानू ने अपने जन्मदिन
पर पत्नी संतोष पानू व अन्य परिजनों के साथ जाकर भाग्यश्री आश्रम जाकर बेसहारा महिलाओं
को भोजन करवाया।
एडवोकेट नरेंद्र पानू ने कहा कि जिंदगी की यात्रा में हम जितना दूसरों के लिए
देते हैं, उतना हमारा अस्तित्व स्थायी और सार्थक बनता है। देहदान एक ऐसा निर्णय है
जो हमारी सेवा भावना को मृत्यु के बाद भी जीवित रखता है।
शरीर दान वह महान सेवा है
जो दिखाती है कि हमारी जिंदगी की असली कीमत केवल हमारे सांसों की गिनती में नहीं, बल्कि
उस सेवा में है जो हम अपने जाने के बाद भी करते हैं। यह ज्ञान, चिकित्सा की प्रगति,
और हजारों अनजान लोगों की जिंदगी में नई रोशनी लेकर आता है। वहीं हमारी पवित्र नदी
गंगा जो सदियों से हमारे विश्वास, संस्कार और जीवन की धारा रही है, आज अस्थि विसर्जन
व मृत देह प्रवाहित करने जैसे पारंपरिक कर्मों से प्रदूषित हो रही है जो बढ़ती हुई
जनसंख्या को देखते हुए चिंता का विषय है।
एडवोकेट नरेंद्र पानी व संतोष पानू ने अन्य लोगों से भी आग्रह किया वे भी इस
अमर यात्रा का हिस्सा बनें। अपने शरीर को एक अंतिम और चिरंजीवी उपहार बनाएं जो ज्ञान
और जीवन दोनों बांट सके। ऐसा करके हम जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी मानवता की भलाई
में अपना योगदान दे सकते हैं और जीवन का असली अर्थ पा सकते हैं। इसलिए देह दान का फैसला
लेकर समाज में अपनी एक ऐसी विरासत छोड़ें जो पीढिय़ों को प्रेरित करे और हमारे समाज
को बेहतर बनाए।
(Udaipur Kiran) / राजेश्वर
