
प्रयागराज, 29 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी पत्नी को केवल इस काल्पनिक आधार पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी शादी अमान्य होने योग्य है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ल ने श्वेता जायसवाल की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रधान परिवार न्यायालय चंदौली के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तर्क को विकृत और स्पष्ट रूप से अवैध करार दिया और पत्नी के दावे पर नए सिरे से निर्णय के लिए मामले को वापस भेज दिया।
परिवार न्यायालय चंदौली ने पति से व्यक्तिगत गुजारा भत्ते के पत्नी (याची) के दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि उनकी नाबालिग बेटी को दो हजार रुपये प्रतिमाह मंजूर किए थे। पुनरीक्षण याचिका में कहा गया था कि परिवार न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि याची बिना किसी पर्याप्त कारण पति से अलग रह रही थी। अलग रहने का कारण यह था कि याची ने पति से पिछली शादी और तलाक की बात छिपाई थी। कहा गया कि गुजारा भत्ता की अर्जी में मुख्य आरोप क्रूरता व दहेज की मांग थी। पहली शादी छिपाने का उल्लेख केवल दलीलों व बयानों में गुजरा हुआ संदर्भ था, जिसे परिवार न्यायालय ने अलग रहने का एकमात्र कारण मान लिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि परिवार न्यायालय ने ऐसा निष्कर्ष निकाला जो पक्षकारों की दलीलों से परे था। पिछली शादी व तलाक को छिपाने के गुजरे हुए संदर्भ से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि याची जानबूझकर पत्नी के रूप में अपने कर्तव्यों से बच रही थी और बिना किसी उचित कारण पति से अलग रह रही थी। कोर्ट ने कहा कि जब तक शून्यकरणीय विवाह को डिक्री से अमान्य घोषित नहीं कर दिया जाता, तब तक कानूनी रूप से पत्नी का दर्जा बना रहता है और उससे उत्पन्न होने वाले सभी अधिकार जारी रहते हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस काल्पनिक आधार पर कि विवाह रद्द किया जा सकता है, गुजारा भत्ता से इनकार करना अनुचित है। खासकर तब, जब किसी पक्षकार ने विवाह रद्द करने की कार्यवाही शुरू नहीं की थी। ऐसे में गलत धारणा पर गुजारा भत्ता की राहत से इनकार करना स्पष्ट रूप से अवैघ व विकृत था। हाईकोर्ट ने सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि विवाह शून्यकरणीय पाए जाने के बाद भी गुजारा भत्ता की राहत दी जा सकती है क्योंकि ऐसी राहत विवेकाधीन है और तथ्यों पर निर्भर करता है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को इस निर्णय की टिप्पणियों के आलोक में याची के गुजारा भत्ता पर नए सिरे से आदेश करने का निर्देश देते हुए कहा कि इस निर्णय से नाबालिग बेटी को दिया गया गुजारा भत्ता अप्रभावित रहेगा।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
