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आईआईटी मंडी की खोज से पक्षी झुंड और मछलियों के सामूहिक तालमेल पर नई रोशनी

लक्ष्मीधर बेहरा निदेशक आईआईटी मंडी।

मंडी, 29 सितंबर (Udaipur Kiran News) । पक्षी झुंड क्यों बनाते हैं, मछलियां समूह में क्यों तैरती हैं या मनुष्य बिना किसी नेता के अपने आंदोलनों को कैसे समन्वित करते हैं? यह सदियों पुराना सवाल विज्ञानियों को विभिन्न क्षेत्रों में दशकों से आकर्षित करता रहा है। अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने इसके लिए एक क्रांतिकारी व्याख्या पेश की है। इसका रहस्य क्वांटम-इंस्पायर्ड पर्सेप्शन में हो सकता है। इस अध्ययन का नेतृत्व प्रो. लक्ष्मिधर बेहेरा और उनकी टीम, डॉ. ज्योतिरंजन बेउरिया और मयंक चौरासिया ने किया।

यह अध्ययन प्रतिष्ठित जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी ए (2025) में प्रकाशित हुआ। इस शोध में एक नया गणितीय ढांचा प्रस्तुत किया गया है, जो प्राकृतिक सामूहिक समन्वय के उभरने की प्रक्रिया को समझाता है। पारंपरिक सामूहिक गति मॉडल जैसे कि प्रसिद्ध विकसेक मॉडल में एजेंट अपने पड़ोसियों की दिशा के आधार पर अपने आंदोलन को संरेखित करते हैं। हालांकि ये मॉडल झुंड और समूह की कुछ विशेषताओं को समझाते हैं, लेकिन वास्तविक दुनिया की जटिलताओं जैसे शोर-भरे वातावरण, प्रतिक्रिया में देरी या अस्पष्ट जानकारी को समझाने में अक्सर असफल रहते हैं।

आईआईटी मंडी की टीम ने इस पहेली को एक अलग दृष्टिकोण से हल किया। क्वांटम मेकैनिक्स से प्रेरित होकर उन्होंने प्रस्तावित किया कि प्रत्येक एजेंट की धारणा तुरंत निश्चित निर्णय में परिवर्तित नहीं होती, बल्कि यह संभावनाओं के सुपरपोज़िशन में मौजूद रहती है, जैसे कि क्वांटम फिजिक्स में किसी पार्टिकल की कई अवस्थाओं में मौजूदगी तब तक बनी रहती है जब तक उसे ऑब्ज़र्व न किया जाए।

प्रो. लक्ष्मिधर बेहेरा, डायरेक्टर, आईआईटी मंडी और पेपर के सह-लेखक ने कहा कि हमारा काम दिखाता है कि क्वांटम-प्रेरित विचार फिजिक्स से परे जाकर प्राकृतिक जगत के सबसे पुराने रहस्यों में से एक, यानी लोकल पर्सेप्शन से कलेक्टिव ऑर्डर के उभरने को समझाने में नई इनसाइट प्रदान कर सकते हैं। इसके इम्प्लीकेशन्स माइंड और ब्रेन से लेकर नेक्स्ट-जेनरेशन इंटेलिजेंट सिस्टम्स इंजीनियरिंग तक हैं। यह अध्ययन मॉडर्न साइंस में बढ़ते ट्रेंड को दर्शाता है: क्वांटम थ्योरी से प्रेरणा लेकर अन्य साइंस डिसिप्लिन्स में नई समझ विकसित करना। कॉग्निटिव साइंस, बायोलॉजी और इंजीनियरिंग को जोड़ते हुए, आईआईटी मंडी का अध्ययन पर्सेप्शन और समन्वय के लिए एक यूनिफाइड फ्रेमवर्क प्रस्तुत करता है।

उन्होंने बताया कि प्रकृति और मशीनों के लिए एक यूनिफाइड फ्रेमवर्क एजेंट अपने नेबर्स को फिक्स्ड स्नैपशॉट्स के माध्यम से नहीं, बल्कि एंटैंगल्ड पर्सेप्चुअल स्टेट्स के माध्यम से पर्सीव करते हैं, जो डायनामिकली इवॉल्व होती हैं।

सामूहिक बुद्धिमत्ता मापने के नए मापदंड

यह स्टडी केवल थ्योरी तक सीमित नहीं है। बायोलॉजी में, यह फ्रेमवर्क बताता है कि कैसे स्वार्म्स डिस्टर्बेंस के बावजूद कोहेसिव रहते हैं। फिजिकल इंटरैक्शन रूल्स पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय, स्टडी यह सुझाव देती है कि पर्सेप्शन खुद जीवित सिस्टम्स में ऑर्डर जेनरेट करने में फंडामेंटल रोल निभाती है। रोबोटिक्स में जैसे सर्च-एंड-रेस्क्यू ऑपरेशंस, एनवायरनमेंटल मॉनिटरिंग या प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन में कोऑर्डिनेटेड ड्रोन्स, क्वांटम-प्रेरित पर्सेप्शन अपनाकर अधिक फ्लेक्सिबल और अडेप्टिव कोऑर्डिनेशन हासिल कर सकते हैं। न्यूरोसाइंस और साइकॉलॉजी में स्टडी दिखाती है कि ह्यूमन पर्सेप्शन अक्सर एम्बिग्युइटी, अचानक स्विचिंग और कॉन्टेक्स्ट-डिपेंडेंट इंटरप्रिटेशन से जुड़ा होता है। मैथमैटिकल मॉडल द्वारा पर्सेप्चुअल डायनेमिक्स की व्याख्या ब्रेन फंक्शन और कॉग्निटिव प्रोसेस को समझने का नया तरीका देती है।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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