Uttar Pradesh

विश्व रेबीज दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम का हुआ आयोजन

विश्व रेबीज दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम का हुआ आयोजन

अयोध्या, 28 सितंबर (Udaipur Kiran News) । डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के सूक्ष्म विज्ञान विभाग में 28 सितंबर को वर्ल्ड रेबीज डे के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।

इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो तुहिना वर्मा ने बताया कि लोगों को रेबीज से डरने की नहीं बल्कि जागरूक होने की जरूरत है। मनुष्यों और जानवरों में इस रोग के द्वारा बचाव और रोकथाम में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने बर्ष 2030 तक रेबीज मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है, और इसके लिए राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के तहत टीकाकरण का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अवसर पर सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग द्वारा छात्र-छात्राओं द्वारा एक नुक्कड़ नाटक के माध्यम से यह जानकारी दी गई कि रेबीज़ एक विषाणु जनित बीमारी है जिस के कारण अत्यंत तेज इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्क का सूजन) इंसानों एवं अन्य गर्म रक्तयुक्त जानवरों में हो जाता है। रेबीज रोग रेबिड़ोविरडी परिवार के लैसा वायरस से होता है। यह एक न्यूरोट्रॉपिक वायरस है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। मानव में इसे हाइड्रोफोबीया या जलकांटा भी कहते है।प्रारम्भिक लक्षणों में बुखार और एक्सपोजर के स्थल पर झुनझुनी शामिल हो सकते हैं। इन लक्षणों के बाद निम्नलिखित एक या कई लक्षण होते हैं। हिंसक गतिविधि, अनियंत्रित उत्तेजना, पानी से डर, शरीर के अंगों को हिलाने में असमर्थता, भ्रम, और होश खो देना। लक्षण प्रकट होने के बाद, रेबीज़ का परिणाम लगभग हमेशा मौत है। रोग संक्रमण और लक्षणों की शुरुआत के बीच की अवधि आमतौर पर एक से तीन महीने होती है। तथापि, यह समय अवधि एक सप्ताह से कम से लेकर एक वर्ष से अधिक तक में बदल सकती है। यह समय अवधि उस दूरी पर निर्भर करता है जिसे विषाणु के लिए केंद्रीय स्नायुतंत्र तक पहुँचने के लिए तय करना आवश्यक है।

रेबीज़ का टीका जो रेबीज़ की रोक थाम में उपयोग किया जाता है।यह बड़ी संख्या में सरकारी अस्पताल में उपलब्ध हैं जो सुरक्षित और प्रभावी दोनों हैं। विषाणु के संपर्क में आने के पहले और संपर्क, जैसे कुत्ते या चमगादड़ का काटना, के बाद एक अवधि के लिए रेबीज़ की रोक थाम में इन का उपयोग किया जा सकता है। तीन खुराक के बाद जो प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है वह लंबे समय तक रहती है। इन्हें आम तौर पर त्वचा या मांसपेशी में इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता हैं। संपर्क में आने के बाद टीका आम तौर पर रेबीज़ इम्युनोग्लोबुलिन के साथ प्रयोग किया जाता है।

कुत्तों के काटने के स्थान और खरोंचों को 15 मिनटों तक साबुन और पानी, पोवीडोन आयोडीन, या डिटर्जेंट से धोना, क्यों कि यह विषाणु को मार सकते हैं, भी कुछ हद तक रेबीज़ के रोक थाम में प्रभावी प्रतीत होता है।लक्षणों के प्रकटन के बाद, केवल कुछ ही व्यक्ति रेबीज़ संक्रमण से बचे हैं। इन का व्यापक उपचार हुआ था जिसे मिल्वौकी प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है। रेबीज़ का टीका इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। आमतौर पर आपको 28 दिनों में इसकी 3 खुराकें दी जाती हैं। यदि 28 दिनों में 3 खुराक लेने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, तो उन्हें 21 दिनों में या कभी-कभी 7 दिनों में दिया जा सकता है। प्रति वर्ष रेबीज से भारत में अठारह हजार से 20 हजार तक लोगों की मृत्यु हो रही है। अतः रेबीज से संक्रमित जानवरों से सावधान और सजक रहे। इस अवसर पर प्रो शैलेन्द्र कुमार, डॉ रंजन सिंह, डॉ नीलम यादव डॉ, शिवी श्रीवास्तव, डॉ मणिकांत त्रिपाठी, डॉ आशुतोष त्रिपाठी, डॉ सोनी तिवारी, डॉ आजाद पटेल एवं अन्य सम्मानित शिक्षकगण एवं अन्य छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

(Udaipur Kiran) / पवन पाण्डेय

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