
शिमला, 28 सितंबर (Udaipur Kiran News) । हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले की प्रसिद्ध स्पीति घाटी को यूनेस्को ने देश के पहले शीत मरुस्थल बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में मान्यता दी है। यह उपलब्धि औपचारिक रूप से चीन के हांगझोउ में 26 से 28 सितंबर तक आयोजित 37वीं अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद (एमएबी-आईसीसी) की बैठक के दौरान हासिल हुई। इस मान्यता के साथ अब भारत के पास यूनेस्को के मानव और बायोस्फीयर (एमएबी) नेटवर्क में कुल 13 बायोस्फीयर रिजर्व हो गए हैं।
प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन्यजीव) अमिताभ गौतम ने कहा कि इस मान्यता के बाद हिमाचल का ठंडा रेगिस्तान वैश्विक संरक्षण मानचित्र पर मजबूती से उभरेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान को सहयोग मिलेगा, स्थानीय लोगों की आजीविका मजबूत करने के लिए जिम्मेदार इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के प्रयासों को नई दिशा मिलेगी।
वहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर डींग सुक्खू ने कहा है कि स्पीति की अनूठी पारिस्थितिकी, जलवायु, संस्कृति और विरासत के संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के जीवन और उनके प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंधों को मान्यता मिलना गर्व की बात है। मुख्यमंत्री ने वन विभाग और वन्यजीव विंग को बधाई देते हुए कहा कि राज्य सरकार विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाते हुए हिमाचल की समृद्ध प्राकृतिक धरोहर और नाजुक पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधान मुख्य अरण्यपाल अमिताभ गौतम के अनुसार स्पीति कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व कुल 7,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें 7,591 वर्ग किलोमीटर का संपूर्ण स्पीति वन्यजीव प्रभाग और लाहौल वन प्रभाग के कुछ हिस्से शामिल हैं, जिनमें बारालाचा दर्रा, भरतपुर और सरचू क्षेत्र (179 वर्ग किलोमीटर) आते हैं। यह क्षेत्र 3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भारतीय हिमालय के ट्रांस-हिमालय जैव-भौगोलिक क्षेत्र का हिस्सा है। रिजर्व को तीन हिस्सों में बांटा गया है—2,665 वर्ग किलोमीटर कोर जोन, 3,977 वर्ग किलोमीटर बफर जोन और 1,128 वर्ग किलोमीटर ट्रांजिशन जोन। इसमें पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रताल आर्द्रभूमि और सरचू के मैदान शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि यह शीत मरुस्थल पारिस्थितिकी तंत्र अपनी विषम जलवायु और नाजुक मिट्टी की वजह से विशेष है। यहां 655 औषधीय और स्थानीय जड़ी-बूटियों, 41 झाड़ियों और 17 वृक्षों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 14 स्थानिक और 47 औषधीय पौधे शामिल हैं। यह पौधे पारंपरिक सोवारिग्पा/आमची चिकित्सा पद्धति में उपयोग होते हैं। यहां 17 स्तनपायी और 119 पक्षियों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं। हिम तेंदुआ इस क्षेत्र का प्रमुख वन्यजीव है, जबकि तिब्बती भेड़िया, लाल लोमड़ी, आइबेक्स, नीली भेड़, हिमालयन स्नोकॉक, गोल्डन ईगल और बेयर्ड गिद्ध यहां की प्रमुख प्रजातियां हैं। यह घाटी 800 से अधिक नीली भेड़ों का भी प्राकृतिक घर है।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
