Jammu & Kashmir

बसोहली रामलीला 114 वर्षों का गौरवपूर्ण इतिहास समेटे हुए

जम्मू,, 28 सितंबर (Udaipur Kiran News) । विश्व प्रसिद्ध बसोहली रामलीला इस वर्ष अपने 114वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इसकी शुरुआत 1912 में लाला गौरी शाह के पुत्र के जन्म के अवसर पर हुई थी। उस समय रामलीला समिति का गठन किया गया और कुंज लाल पाधा को प्रधान तथा भीमसेन पाधा को सरपरस्त बनाया गया। पहले वर्ष 500 रूपये चंदे से अमृतसर से आवश्यक वस्तुएँ लाई गईं और 12 अक्टूबर 1912 को रामलीला का आयोजन हुआ।

70 के दशक तक इस रामलीला में माइक का प्रयोग नहीं होता था। कलाकार अपनी दमदार आवाज में संवाद बोलते थे, जिसकी गूंज अटल सेतु पार पंजाब तक सुनाई देती थी। रामलीला में शास्त्रीय संगीत का विशेष महत्व था, और समय के साथ संगीत में भी परिवर्तन हुआ।

बसोहली रामलीला रामचरितमानस पर आधारित है, लेकिन इसमें कुछ प्रसंग जसवंत सिंह रामायण से लिए गए हैं। रामलीला का मंचन खुले आसमान के नीचे होता है, बिना रंगमंच और पर्दे के। यह आयोजन दर्शकों को पंजाब, हिमाचल और देश-विदेश से आकर्षित करता है। रामलीला के मुख्य आकर्षण में सीता जन्म, सीता हरण, लक्ष्मण मूर्छित होना, बाली-सुग्रीव युद्ध, संजीवनी बूटी का प्रयोग शामिल हैं।

पिछले 24 वर्षों से तारीक जावेद सुषेण वैद्य रामलीला में मूर्छित लक्ष्मण में संजीवनी से जान फूंकने का दृश्य प्रस्तुत कर रहे हैं, जबकि मुदस्सर सरनाज रामलीला मंच सजाने और कुर्सियों की व्यवस्था का कार्य संभालते हैं। अटल सेतु बनने के बाद हर वर्ष बड़ी संख्या में दर्शक रामलीला देखने आते हैं।

बसोहली रामलीला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है बल्कि यह आपसी भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक भी बन चुकी है। यह आयोजन वर्षों से स्थानीय लोगों और कलाकारों के उत्साह, समर्पण और मेहनत का परिणाम है, जो इसे विश्व प्रसिद्ध बनाता है।

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(Udaipur Kiran) / अश्वनी गुप्ता

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