
-ड्राफ्टिंग संविधान की भावना व लोकतंत्र को बनाएगी सशक्त
अधूरी विधायी भाषा, भ्रम और कष्ट का कारण बन सकती हैचंडीगढ़, 26 सितंबर (Udaipur Kiran News) । हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण ने कहा कि लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग वास्तव में बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। इसका अर्थ है नीति को औपचारिक और कानूनी भाषा में बदलना ताकि वे साफ, सटीक और सबको समझ में आने योग्य कानून के रूप में सामने आ सके।
विधायी ड्राफ्टिंग में भाषा ऐसी हो कि कोई भी नागरिक पढक़र साफ -साफ समझ सकें कि उसमें क्या लिखा है यानी क्लेरिटी होनी चाहिए। शब्दों का चयन ऐसा हो कि एक ही बात के दो अलग-अलग अर्थ न निकले यानी प्रिसिजन हो। पूरा कानून एक समान नियम और शैली में तैयार किया जाए यानी कि कंसिस्टेंसी हो।
विधानसभा अध्यक्ष शुक्रवार को चंडीगढ़ में विधायी प्रारूपण एवं क्षमता संवर्धन विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि आज का यह आयोजन केवल एक प्रशिक्षण सत्र नहीं और न ही ये कोई औपचारिकता है, बल्कि यह हमारे लिए एक सामूहिक प्रयास है, जो हरियाणा की शासन व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम सभी विकसित भारत 2047 के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे। इस लक्ष्य की प्राप्ति में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं की एक बहुत बड़ी भूमिका है।
उन्होंने कहा कि लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग विधायी प्रक्रिया का ही एक मूल हिस्सा है, क्योंकि ये काम संसदीय विधानसभा में बिल पहुंचने से पहले ही शुरू हो जाता है। जब कोई नया कानून बनाना हो, किसी पुराने कानून में संशोधन करना हो या किसी कानून को समाप्त करना हो, तो इसकी पहल संबंधित मंत्रालय या विभाग से होती है। यही लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग का असली मकसद भी है कि समाज की जरूरतों को पहचान कर उन्हें स्पष्ट, सरल और प्रभावी कानून की भाषा में ढालें।
हरविंद्र कल्याण ने कहा कि वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक घोषित किया था। क्योंकि ये धारा ऐसे शब्दों पर जैसे आक्रामक, अपमानजनक, कष्टदायक शब्दों पर आधारित थी, जिनकी कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं थी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस को रद्द कर दिया था ताकि डिजिटल युग में फ्री स्पीच सुरक्षित रह सकें। अधूरी विधायी भाषा, भ्रम और कष्ट का कारण बन सकती है और अदालतों में भी विवाद बढ़ते जाते हैं।
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(Udaipur Kiran) शर्मा
