Uttar Pradesh

अंतिम व्यक्ति का उत्थान ही पं. दीनदयाल जी के विचारों को जीवन में अपनाने का सही मार्ग : रामजी भाई

अंतिम व्यक्ति का उत्थान ही पं. दीनदयाल जी के विचारों को जीवन में अपनाने का सही मार्ग

कानपुर,25 सितंबर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद में कल्याणपुर स्थित छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में पंडित दीन दयाल उपाध्याय की 110 वीं जयंती की संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रामजी भाई मौजूद रहे। यह जानकारी गुरूवार को विश्वविद्यालय मीडिया प्रभारी डॉ. विशाल शर्मा ने दी।

मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रामजी भाई ने कहा कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान का प्रयास करना ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को जीवन में अपनाने का सही मार्ग है। पृथ्वी पर महान पुरुष कम समय के लिए आते है और अपना काम कर के चले जाते है। उनको किसी प्रकार के पैसों का लोभ नहीं होता। इस मौके पर उन्होंने एकात्म मानववाद के चार सूत्रों धर्म (धार्मिकता), अर्थ (धन/ समृद्धि), काम (सुख/ इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति) को भी विस्तार से बताया। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि एकात्म मानववाद का लक्ष्य व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए प्रत्येक मनुष्य के लिए गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए राष्ट्रधर्म प्रकाशन के प्रभारी निर्देशक सर्वेश चन्द्र द्विवेदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की स्वतंत्रता के बाद विकास के लिए एक स्वदेशी वैचारिक ढांचा प्रस्तुत किया, जिसे एकात्म मानववाद (एकात्म मानव दर्शन) कहा गया। जो हमें एक न्यायपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण में मानवीय गरिमा, सद्भाव और एकजुटता के आंतरिक मूल्य की याद दिलाता है। साथ ही उन्होंने कहा कि हम सभी को दीन दयाल उपाध्याय के द्वारा बताये गये दर्शन को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए| उन्होंने कहा कि वेदों को जानेंगे तो अपनी प्रकृति को भी जानेंगे ।

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक व दीन दयाल के कई कार्यक्रमों में उनके सहयोगी रहे ज्ञानेंद्र मिश्रा ने उपाध्याय जी के जीवन पर प्रकाश डाला और उनके साथ बिताये गये समय के अनुभवों व् उनके विचारों को साझा किया।

उन्होनें बताया कि दीन दयाल जी सादा जीवन व्यतीत करते थे। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है जब वह अपने महापुरुषों के विचारों और संसाधनों का सही ढंग से उपयोग करे।

संगोष्ठी कि अध्यक्षता करते हुए विवि के प्रतिकुलपति व शोध केंद्र के निदेशक प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने कहा कि आज हमको भारत कि युवा शक्ति और उसकी मेधा पर गर्व है यदि हम अपने मेधावियों को स्वदेशी का पाठ पढ़ायें तो भारत को विश्वगुरू बनने से कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने कहा कि हमको भारतीय ज्ञान परम्परा व अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिये। इसके साथ ही उन्होंने पुरुषार्थ के चार कर्मो के बारे में भी बताया। उन्होंने दुर्गा सप्तशती पाठ के बारे में बताते हुये कहा इसको करने से शरीर में सकारात्मक उर्जा आती है। उन्होंने कहा कि हमारे अन्दर दूसरों को क्षमा करने की ताकत होनी चाहिए।

कार्यक्रम का सफल मंच संचालन दीन दयाल शोध केंद्र के सहायक निदेशक डॉ. दिवाकर अवस्थी द्वारा किया गया।

वरिष्ठ आचार्य श्रवण कुमार द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।

इस संगोष्ठी में आचार्य स्वयंप्रकाश अवस्थी, आचार्य संगम बाजपेयी, डॉ इन्द्रेश कुमार शुक्ल समेत विभिन्न संकाय सदस्यों के साथ-साथ बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे, जिन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों से प्रेरणा ली और समाज सेवा के प्रति समर्पण की भावना विकसित की।

(Udaipur Kiran) / मो0 महमूद

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