
भोपाल, 25 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश में किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा खाद्य एवं कृषि संगठन की ग्रीन-एजी परियोजना के अंतर्गत श्योपुर जिले के किसानों का एक दल गुरुवार को राज्य तकनीकी समन्वयक डॉ. नीलम बिसेन पवार, संचार अधिकारी मिली मिश्रा और पशुपालन विशेषज्ञ अमृतेश वशिष्ठ के साथ सीहोर स्थित आईसीएआरडीए केंद्र, अमलाहा पहुँचा। इस दौरे का उद्देश्य किसानों को कांटारहित कैक्टस की खेती और उसके विविध उपयोगों के बारे में जानकारी देना था।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में डॉ. नेहा तिवारी, वैज्ञानिक (ICARDA-India) ने बताया कि कैक्टस एक ऐसा पौधा है जो बेहद कम पानी में भी आसानी से उग जाता है और शुष्क व बंजर भूमि में भी अच्छी तरह पनप सकता है। कांटारहित होने से यह पशुओं के लिए गर्मी और सूखे के समय हरे चारे का एक महत्वपूर्ण वैकल्पिक स्रोत है। इसके अतिरिक्त, कांटा रहित नागफनी से बायोगैस और खाद तैयार करने के तरीके भी किसानों को समझाए गए।
किसानों को कैक्टस की पोषण संबंधी विशेषताओं और इसके दीर्घकालिक लाभों के बारे में भी जानकारी दी गई। इस दौरान किसानों ने खेतों में जाकर प्रत्यक्ष रूप से कांटारहित कैक्टस की विभिन्न किस्मों के पौधों का अवलोकन किया और उसकी खेती की तकनीक को समझा। किसानों का मानना था कि यह खेती न केवल पशुपालन के लिए उपयोगी है बल्कि उनकी आय बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध हो सकती है।
वर्तमान में ग्रीन-एजी परियोजना श्योपुर और मुरैना जिलों में संचालित है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और सतत भूमि प्रबंधन को भारतीय कृषि प्रणाली में एकीकृत करना है। इसके अंतर्गत किसानों को नई और पर्यावरण अनुकूल खेती की तकनीकें सिखाई जा रही हैं, जिनमें कैक्टस की खेती विशेष रूप से लाभकारी साबित हो सकती है।
(Udaipur Kiran) तोमर
