श्रीनगर, 25 सितंबर हि.स.। नेशनल कॉन्फ्रेंस के संरक्षक डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने गुरुवार को भारत सरकार से लद्दाख के लोगों के साथ सार्थक बातचीत करने का आग्रह किया और चेतावनी दी कि उनकी लंबे समय से चली आ रही मांगों की अनदेखी करने से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में अशांति बढ़ सकती है।
श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि लेह में हुई हालिया हिंसक घटनाएँ वर्षों से अनसुलझे शिकायतों का सीधा नतीजा हैं। उन्होंने कहा कि लद्दाखी पिछले पाँच सालों से छठी अनुसूची में शामिल होने और राज्य का दर्जा बहाल करने की माँग कर रहे थे लेकिन उन्हें केवल अस्पष्ट आश्वासन ही मिले।
अब्दुल्ला ने कहा कि लद्दाख में जो कुछ भी हुआ वह अच्छा नहीं था। लोग सोनम वांगचुक के नेतृत्व में शांतिपूर्वक संघर्ष कर रहे थे जिन्होंने गांधीवादी तरीके अपनाए थे लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। जब लेह के युवाओं को एहसास हुआ कि उनकी आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है, तो उन्होंने हिंसा का सहारा लिया।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वांगचुक ने स्वयं अहिंसा का पालन किया था लेकिन बढ़ती निराशा ने युवाओं को कार्रवाई के लिए प्रेरित किया। अब्दुल्ला ने कहा कि सोनम वांगचुक ने कुछ नहीं किया लेकिन लद्दाख के युवाओं ने किया और वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
नेकां नेता ने चेतावनी दी कि लद्दाख की रणनीतिक स्थिति ने स्थिति को और नाजुक बना दिया है। चीन हमारे सिर पर है। भारत सरकार को बातचीत करके इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए। हर बार जब कुछ होता है तो वे बाहरी लोगों को दोष देते हैं लेकिन हमारे पास टूटे वादों का कड़वा अनुभव है। कश्मीर से कहा कि गया था कि परिसीमन के बाद फिर चुनावों के बाद राज्य का दर्जा दिया जाएगा लेकिन कुछ नहीं हुआ। लद्दाख के साथ भी यही विश्वासघात दोहराया जा रहा है।
अब्दुल्ला ने तर्क दिया कि इस मुद्दे को बढ़ने नहीं देना चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि इस मामले को सुलझाया जाए और वादों को अमल में लाया जाए। दिल्ली को तेज़ी से काम करना चाहिए। लद्दाख के लोगों को निराश किया गया है।
सीमा संबंधी चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि चीनी कब्जे की सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया जानती है कि भारत की कितनी ज़मीन चीन के कब्ज़े में है। हम कब तक झूठ की शरण में रह सकते हैं अब सच्चाई का सामना करने का समय आ गया है। लद्दाख संवेदनशील है और नेहरू के समय से ही चीन ने मैकमोहन रेखा को कभी स्वीकार नहीं किया है।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दबावों का भी ज़िक्र किया और बताया कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया था कि भारत यूक्रेन युद्ध का समर्थन कर रहा है। अब्दुल्ला ने कहा कि यह सच नहीं है। भारत किसी भी युद्ध का समर्थन नहीं करता। लेकिन ऐसे बयान हमारे क्षेत्र पर वैश्विक ध्यान केंद्रित होने का संकेत देते हैं।
उन्होंने संयम बरतने का आग्रह किया और टकराव के रास्ते को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि एनसी कभी भी ऐसा रास्ता स्वीकार नहीं करेगी जहाँ युवाओं को कष्ट सहना पड़े। मैं खून-खराबा नहीं चाहता। हमें बातचीत समझ और ईमानदारी की ज़रूरत है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अब्दुल्ला के साथ एनसी के वरिष्ठ नेता अली मुहम्मद सागर, डॉ. शेख मुस्तफा कमाल, शमीमा फिरदौस और अन्य मौजूद थे।
(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता
