
—शारदीय नवरात्र में इस बार दो दिन मां कुष्मांडा का होगा दर्शन,काशीपुराधिपति की नगरी शक्ति आराधना में लीन
वाराणसी,25 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी (काशी) शारदीय नवरात्र में आदिशक्ति की आराधना में लीन है। श्रद्धा-भक्ति की कतार सभी प्रमुख देवी मंदिरों में दिख रही है। नवरात्रि के चौथे दिन गुरूवार काे श्रद्धालु पूरे उत्साह और आस्था के साथ मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप के दर्शन के लिए दुर्गाकुंड स्थित दरबार में आधी रात के बाद से ही हाजिरी लगाते रहे। सच्चे दरबार की जय और मां शेरा वाली के जयकारे दरबार में भोर से ही गुंजायमान है। इस बार शारदीय नवरात्र दस दिन का होने के कारण कुष्मांडा दरबार के दर्शन पूजन का सौभाग्य दो दिन मिलेगा।
इसके पहले मुख्य पुजारी के देखरेख में रात तीन बजे के बाद मां के विग्रह को पंचामृत स्नान कराया गया। नूतन वस्त्र धारण करा कर पुष्प मााला, गहनों से उनका भव्य श्रृंगार किया गया। भोग लगाने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंगला आरती करके भक्तों के लिए मंदिर का कपाट खोल दिया गया। मंदिर का कपाट खुलते ही कतारबद्ध श्रद्धालु दरबार में अपनी बारी आने पर मत्था टेकते रहे। —नारियल, चुनरी, सिंदूर के साथ महिलाओं की अर्जीमहिलाओं ने माता रानी को नारियल चुनरी और सिंदूर अर्पित कर संतति वृद्धि, श्री समृद्धि, अखण्ड सौभाग्य की अर्जी लगाई। दरबार में सुबह से ही दर्शन पूजन के लिए दर्शनार्थियों की लम्बी कतार मुख्य सड़क पर लगी रही। श्रद्धालुओं के चलते मंदिर परिसर के आसपास मेले जैसा नजारा बना हुआ है।
चौथे दिन ही शक्तिपीठ मां विशालाक्षी, संकठा मंदिर, महिषासुर मर्दिनी, अर्दली बाजार महावीर मंदिर स्थित दुर्गा दरबार, भोजूबीर दक्षिणेश्वरी काली मंदिर में भी दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु जुटे रहे।
सनातन धर्म में मान्यता है कि आदिशक्ति के कुष्मांडा स्वरूप के दर्शन से जीवन की सभी बाधाएं, विघ्न और दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्त भवसागर की दुर्गति से भी उबर जाते हैं। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, जिनमें क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं। मान्यता के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार ही अंधकार फैला हुआ था, तब मां कुष्मांडा ने अपने ‘ईषत’ हस्त से सृष्टि की रचना की थी। इस प्राचीन देवी मंदिर का जिक्र ‘काशी खंड’ में भी मिलता है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है और इसके गाढ़े लाल रंग के स्वरूप के कारण इसे आध्यात्मिक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। देवी के मंदिर में प्रतिमा के स्थान पर मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है। साथ ही यहां यांत्रिक पूजा भी होती है। इस मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गयी है। खास बात यह है कि इस आध्यात्मिक शक्तिपीठ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी श्रद्धाभाव से मत्था टेक चुके है।—मंदिर की बारे में मान्यता
काशी में मान्यता है कि काशी नरेश की पुत्री शशिकला के स्वयंवर में सुदर्शन की रक्षा के लिए मां दुर्गाकुंड से प्रकट हुई थीं। काशी नरेश सुबाहू को देवी का वरदान प्राप्त था। उन्होंने ही प्रार्थना कर मां को यही विराजमान होने का अनुरोध किया। तभी से मां दुर्गा यहां विराजमान हैं। माना जाता है कि देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है।माना जाता है कि कुष्माण्डा की उपासना से अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति होती है। माता रानी ने कूष्मांड़ा स्वरूप असुरों के अत्याचार से देव ऋषियों को मुक्ति दिलाने के लिए धारण किया था। देवी कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुई थी। एक और मान्यता है कि शुंभ-निशुंभ राक्षस का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थककर इसी मंदिर में विश्राम किया था। जिन दिव्य स्थलों पर देवी मां साक्षात प्रकट हुईं वहां निर्मित मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। ऐसे मंदिरों में चिह्न पूजा का ही विधान हैं।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
