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संस्कृत को बाहर रखना शिक्षा नीति के विपरीत : प्रोफेसर दुबे

संस्कृत को बाहर रखना शिक्षा नीति के विपरीत : प्रोफेसर दुबे

जयपुर, 24 सितंबर (Udaipur Kiran News) । जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय के लिए जारी भर्ती अधिसूचना में संस्कृत विषय को शामिल न करने पर केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखकर कड़ा एतराज जताया है। उन्होंने 19 सितम्बर 2025 को जारी अधिसूचना में संस्कृत अध्यापकों के पदों का उल्लेख न होने को अत्यंत चिंताजनक बताया।

प्रो. दुबे ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी द्वारा जारी 7267 पदों की भर्ती अधिसूचना में विभिन्न भाषाओं के अध्यापकों को स्थान दिया गया है, पर संस्कृत विषय को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पूर्व वर्षों में संस्कृत विषय के पद नियमित रूप से अधिसूचित होते रहे हैं। संस्कृत की उपेक्षा भारतीय ज्ञान–परम्परा और शिक्षा की जड़ों को काटने जैसा है।

प्रो. दुबे ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, साहित्य, विज्ञान और ज्ञान–परंपरा की मूलाधार है। संस्कृत अध्यापक बहुभाषिक क्षमता से संपन्न होते हैं और वे हिन्दी, स्थानीय भाषाओं तथा सामान्य विषयों के साथ-साथ भारतीय ज्ञान प्रणाली के गहन जानकार होते हैं। ऐसे शिक्षक विद्यार्थियों में सांस्कृतिक चेतना, नैतिक मूल्यों और राष्ट्रीय एकात्मता का भाव जाग्रत करने में सक्षम होते हैं।

प्रो. दुबे ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा के संरक्षण और प्रसार पर निरंतर ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में संस्कृत को भर्ती से बाहर रखना न केवल उनकी दूरदृष्टि बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 की भावना के भी प्रतिकूल है। इस निर्णय से देशभर के संस्कृत शिक्षक और संस्कृत प्रेमी गहरी निराशा और आक्रोश में हैं।

उन्होंने जनजातीय कार्य मंत्रालय से आग्रह किया कि अधिसूचना में संशोधन कर संस्कृत अध्यापकों के पद शामिल किए जाएं ताकि जनजातीय छात्र-छात्राओं को भारतीय ज्ञान परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का अवसर मिल सके। कुलपति ने कहा कि मंत्रालय की सकारात्मक पहल से संस्कृत भाषा का गौरव पुनः प्रतिष्ठित होगा और जनजातीय समाज के विद्यार्थी राष्ट्रीय धारा में सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से और अधिक सुदृढ़ बन सकेंगे।

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(Udaipur Kiran)

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