


झाड़ग्राम (Udaipur Kiran News) ।
झाड़ग्राम जिले के गोपिबल्लभपुर-2 ब्लॉक के बालीपाल ग्राम में स्थित केंदुआबुड़ी थान केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और संस्कृति का दिव्य संगम है। माना जाता है कि यहां की पूजा परंपरा लगभग पांच सौ वर्ष पुरानी है और इसी पूजा के साथ इस क्षेत्र में दुर्गोत्सव का शुभारंभ होता है।
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में बालीपाल के राजा जब युद्ध से लौट रहे थे तो उन्होंने एक नीम वृक्ष के नीचे विश्राम किया। तभी देवी केंदुआबुड़ी प्रकट हुईं और थके हारे राजा को ‘केंदु’ का फल खाने को दिया। देवी ने राजा को बताया वह इसी निम के पेड़ के नीचे रहती है और राजा को इस स्थान पर पूजा आरंभ करने की आज्ञा दी। तभी से यह स्थान केंदुआबुड़ी थान के नाम से प्रसिद्ध हुआ और यहां पूजा की परंपरा स्थापित हो गई। ग्रामीणों का विश्वास है कि माता खुले आकाश और प्राकृतिक वातावरण में ही विराजमान रहना पसंद करती हैं।
हर मंगलवार और शनिवार को यहां देवी की विशेष पूजा होती है दूर दराज से लोग मनोकामनाएं लेकर पूजा करने आते हैं, दुर्गोत्सव की शुरुआत भी इनकी पूजा से मानी जाती है। स्थानीय परंपरा है कि मां की प्रतिमा स्थापित करने से पहले केंदुआबुड़ी की पूजा करना अनिवार्य है। यहां की एक और विशेष परंपरा यह है कि पूजा का कार्य ब्राह्मणों द्वारा नहीं, बल्कि बागदी समुदाय के पुरोहित, जिन्हें स्थानीय भाषा में देहुरी कहा जाता है, संपन्न करते हैं। प्रसाद अर्पण की भी विशेष परंपरा है। श्रद्धालु देवी को फल और आतप चावल (कच्चा चावल) अर्पित करते हैं। अन्यत्र प्रचलित खिचड़ी या भोग की प्रथा यहां नहीं है।
जनश्रुति के अनुसार, प्रारंभिक काल में यहां बलि प्रथा भी प्रचलित थी और किंवदंती है कि बलि का रक्त बहकर समीपवर्ती दुलुंग नदी तक पहूंचता था। हालांकि अब यह परंपरा लोककथाओं तक ही सीमित रह गई है। समय के साथ यहां कई परिवर्तन हुए। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में यहां एक प्राचीन मूर्ति स्थापित थी जो कालांतर में क्षतिग्रस्त हो गई। बाद में सामूहिक प्रयास से पूजा को नए स्वरूप में जारी रखा गया। आज भी यहां भव्य मंदिर नहीं है, बल्कि खुले आकाश तले साधारण रूप से पूजा होती है, जिसे श्रद्धालु उतना ही पवित्र और प्रभावशाली मानते हैं।
केंदुआबुड़ी थान न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच आस्था और एकता का प्रतीक भी है। दुर्गोत्सव की शुरुआत इसी पूजा से होने के कारण इसकी आध्यात्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां देवी जाग्रत शक्ति के रूप में विराजमान हैं। यह भी लोकमान्यता है कि नवमी की रात को देवी स्वयं प्रसाद ग्रहण करती हैं। भक्तों का कहना है कि माता की कृपा से हर संकट दूर होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
भले ही केंदुआबुड़ी थान का स्वरूप भव्य न हो, किंतु इसकी परंपरा और आस्था अत्यंत प्राचीन और गहन है। पूजा के दिनों में यहां गीत, नृत्य और लोककथाओं की गूंज सुनाई देती है। दूर-दराज के गांव से श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहूंचते हैं और माता के दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हैं।
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(Udaipur Kiran) / अभिमन्यु गुप्ता
