Haryana

गुरुग्राम: कहीं नारद मोह की हुई लीला तो कहीं सीता स्वंयवर

गुडग़ांव गांव स्थित श्री गुरु द्रोणाचार्य रामलीला में मंचित लीला का दृश्य।

-मिलेनियम सिटी में भव्यता से मंचित की जा रही हैं रामलीलाएं

गुरुग्राम, 23 सितंबर (Udaipur Kiran News) । मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में अनेक स्थानों पर भव्यता से रामलीलाओं का मंचन किया जा रहा है। हर रामलीला क्लब में एक-दूसरे से बेहतर लीला दिखाने की भी होड़ रहती है। बीती रात की लीला में कहीं नारद मोह की लीला हुई तो कहीं सीता स्वयंवर हुआ। यहां श्री गुरु द्रोणाचार्य रामलीला क्लब गुडग़ांव गांव में पहले दिन की रामलीला में नारद मोह की लीला का मंचन किया गया।

रामलीला में दिखाया गया कि-नारद जी को घमंड हो गया था कि उनकी तपस्या के कारण ही भगवान इन्द्र का सिंहासन डोल उठा। उसके उपरांत भगवान विष्णु ने अपनी माया से श्री निवासपुरी नगरी जैसी अति सुंदर नगरी का निर्माण किया। वहां के राजा शीलनिधि द्वारा अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा गया। जिसमें दूर-दूर के राजाओं ने भाग लिया। ऋषिराज नारद तत्काल विश्वमोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गये और साथ ही शिव जी के वे दोनों गण भी ब्राह्मण का वेश धारकर वहां पहुंच गये। वे दोनों गण नारद जी को सुना कर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुन्दर रूप दिया है कि राजकुमारी सिर्फ इन पर ही रीझेगी। उनकी बातों से नारद जी अत्यन्त प्रसन्न हुए। स्वयं भगवान विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गये। विश्वमोहिनी ने स्रह्नरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजारूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। मोह के कारण नारद जी की बुद्धि नष्ट हो गई थी।

जब वे गुस्से से आग-बबूला थे तो उसी समय शिवजी के गणों ने वहां व्यंग्य करते हुए नारद जी से कहा कि जरा दर्पण में अपना मुंह तो देखिये। नारद जी ने जल में अपना मुंह देता तो खुद की कुरुपता देखकर और क्रोधित हो गए। उन्होंने शिवजी के उन गणों को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप देने के बाद जब नारद जी ने फिर से जल में देखा तो पता चला कि उनका असली रूप वापस आ चुका है। बेशक उन्हें अपना असली रूप मिल गया हो, लेकिन भगवान विष्णु पर उन्हें क्रोध आ रहा था। रास्ते में रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी से हुई, जिनके साथ लक्ष्मी जी और विश्वमोहिनी भी थीं। नारद जी ने उनसे कहा कि में तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम मनुष्य के रूप में जन्म लोगो। तुमने हमें स्त्री वियोग दिया, इसलिए तुम्हें भी स्त्री वियोग सहकर दुखी होना पड़ेगा। हमें बंदर का रूप दिया है, इसलिए बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगें। यानी उनका सहारा लेना पड़ेगा।

(Udaipur Kiran)

Most Popular

To Top