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साढ़े पांच सौ अनुदानित मदरसों की ईओडब्ल्यू जांच पर रोक

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के क्रम में की जा रही है जांच

प्रयागराज, 23 सितम्बर (Udaipur Kiran News) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश के क्रम में 558 सहायता प्राप्त मदरसों के खिलाफ चल रही आर्थिक अपराध शाखा की जांच पर रोक लगा दी है।

न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव एवं न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने आदेशों पर रोक लगाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही मामले पर अगली सुनवाई के लिए 17 नवम्बर की तारीख लगाई है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मोहम्मद तलहा अंसारी की शिकायत के आधार पर महानिदेशक आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले में जांच के लिए कहा था। वाराणसी के टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया व दो अन्य की याचिका में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गत 28 फरवरी, 23 अप्रैल और 11 जून के उन आदेशों को रद्द करने की मांग की गई है जिनमें महानिदेशक आर्थिक अपराध शाखा को शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच करने और कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।

याचिका में बीते 23 अप्रैल के उस सरकारी आदेश को भी रद्द करने की मांग की गई है, जिसके तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के उक्त निर्देशों के बाद आर्थिक अपराध शाखा द्वारा 558 सहायता प्राप्त मदरसों की व्यापक जांच की जा रही है। कहा गया है कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12 के तहत आयोग के कार्य विशेष रूप से गिनाए गए हैं। यह भी कहा गया कि अधिनियम की धारा 36(2) स्पष्ट रूप से यह बताती है कि आयोग किसी भी मामले की जांच उस तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के बाद नहीं करेगा, जिस तारीख को मानवाधिकारों के उल्लंघन का कोई कार्य हुआ था। यह भी तर्क दिया गया कि धारा 12-ए के तहत आयोग स्वतः संज्ञान से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति की याचिका पर या किसी न्यायालय के किसी निर्देश या आदेश के आधार पर जांच कर सकता है।

इस मामले में धारा 12-ए के तहत कोई भी शर्त लागू नहीं होती है। यह भी कहा गया कि शिकायत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के कार्य की तारीख का उल्लेख नहीं है। शिकायत में दिए गए आरोप अस्पष्ट हैं और किसी विशिष्ट तारीख का खुलासा नहीं करते हैं। इसलिए यह पता लगाना संभव नहीं है कि शिकायत मानवाधिकार उल्लंघन की तारीख से एक वर्ष के भीतर की गई थी या नहीं। ऐसे में तर्क दिया गया कि आयोग की पूरी कार्रवाई अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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