Uttar Pradesh

शांति और मानवता के लिए वसुधैव कुटुम्बकम ही समाधान: कुलपति

अन्य प्रतिभागी प्रतिभाग करते
व्याख्यानमाला में व्याख्यान देते कुलपति

त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय श्रीमती कांति देवी जैन व्याख्यानमाला सम्पन्न

देश विदेश के वक्ताओं ने ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ‘ को माना अशांत विश्व को शांत करने वाला मूलमंत्र

झांसी, 22 सितंबर (Udaipur Kiran) । गुरुग्राम स्थित भारत अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र, चाणक्य वार्ता, हंसराज कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “अशांत विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम की प्रासंगिकता” विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय श्रीमती कांति देवी जैन व्याख्यानमाला के दौरान बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) मुकेश पांडेय ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि “भारत ने प्राचीन काल से ही पूरे विश्व को एक परिवार माना है और उसी दर्शन के अनुरूप कार्य और व्यवहार किया है। इंसान कहीं का भी हो, वह सर्वप्रथम इंसान है—यह संदेश हमें वसुधैव कुटुम्बकम से मिलता है।”

प्रो. पांडेय ने कहा कि आज जब विश्व में अशांति, जलवायु परिवर्तन, महामारी और आपदाएँ मानवता को चुनौती दे रही हैं, ऐसे समय में सम्राट अशोक की अहिंसा की नीति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का “वसुधैव कुटुम्बकम” का मंत्र ही विश्व को जोड़ने के लिए सच्चा समाधान है। “आज की परिस्थितियों में मानवीय संवेदनशीलता, सहयोग और सबका कल्याण ही वैश्विक शांति का मार्ग है। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ही हम समृद्ध, शांतिपूर्ण और स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “भारत की सांस्कृतिक विरासत, अहिंसा, दया और भाईचारे की भावना को वैश्विक स्तर पर और अधिक प्रसारित करने की आवश्यकता है जिससे विश्व समुदाय एक परिवार की तरह आगे बढ़ सके।”

प्रो. पांडेय ने व्याख्यानमाला के आयोजन के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया और आशा जताई कि ऐसे विमर्श विश्व शांति एवं मानवता के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

तीनों दिन की प्रस्तावना एवं विषय पर्वतन श्रीमती कांति देवी जैन स्मृति न्यास के अध्यक्ष डॉ अमित जैन ने प्रस्तुति की। तीसरे दिन अतिथियों का स्वागत शुभदा वराडकर एवं धन्यवाद ज्ञापन बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के प्रो डॉ अवनीश कुमार ने और अध्यक्षीय भाषण लक्ष्मीनारायण भाला द्वारा दिया गया। तीनों दिन का संचालन अभिषेक त्रिपाठी, आयरलैंड द्वारा किया गया। इस महत्वपूर्ण व्याख्यानमाला में ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट; बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी; उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी; महाराजा सुहेल देव राज्य विश्वविद्यालय, आजमगढ़; ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ; एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद्, नई दिल्ली; नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली ने सहयोगी संस्था के रूप में भाग लिया।

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(Udaipur Kiran) / महेश पटैरिया

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