

रूस के काल्मिकिया में पिपरहवा अवशेषों का 24 सितंबर से 1 अक्टूबर तक होगा प्रदर्शन
शांति व करुणा का संदेश समेटे हैं पिपरहवा अवशेष को वापसी को प्रधानमंत्री ने बताया था राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण
लखनऊ/नई दिल्ली, 21 सितंबर(Udaipur Kiran News) । उत्तर प्रदेश एक बार फिर वैश्विक बौद्ध धरोहर के केंद्र में आ गया है। 127 वर्ष पहले पवित्र पिपरहवा अवशेष, जो सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्तूप से 1898 में खोजे गए थे, यह भारत वापस लौट आए हैं। अब इनका रूस के काल्मिकिया में लगने वाली एक
प्रदर्शनी में रखे जाएंगे। इसके लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर एक प्रतिनिधिमंडल रूस के काल्मिकिया जाएगा, जिसका नेतृत्व उत्तर प्रदेश
सरकार के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद माैर्य करेंगे।
जल्द होगा सार्वजनिक प्रदर्शन
औपनिवेशिक काल में विदेश ले जाए गए पिपरहवा अवशेष मई 2025 में हांगकांग की एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में रखे गए थे। इसकी सूचना
पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और गॉदरेज इंडस्ट्रीज़ ग्रुप के संयुक्त प्रयास से यह नीलामी रुकवाई गई थी और 30 जुलाई 2025 को इन अवशेषाें काे भारत वापस लाया गया। पिपरहवा अवशेष की वापसी भारत के साथ उत्तर प्रदेश की भूमि के उस गौरवशाली इतिहास की पुनः स्थापना है, जिसने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से पूरी दुनिया को आलोकित किया। इन अवशेषों का सार्वजनिक प्रदर्शन शीघ्र ही आयोजित किया जाएगा। यह आयोजन उत्तर प्रदेश को वैश्विक बौद्ध धरोहर का केंद्र बनाने और राज्य की सांस्कृतिक पर्यटन संभावनाओं को नई ऊंचाई देने वाला साबित होगा।
उत्तर प्रदेश: बुद्ध की धरोहर
सिद्धार्थनगर का पिपरहवा स्तूप, जहां भगवान बुद्ध के अवशेष खोजे गए। वाराणसी का सारनाथ, जहां उन्होंने प्रथम उपदेश दिया और कुशीनगर, जहां उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। यह पावन त्रिकोण उत्तर प्रदेश को विश्वभर के करोड़ों बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा और अद्वितीय तीर्थस्थल बनाता है। उत्तर प्रदेश की पावन धरती भगवान बुद्ध की तपोभूमि है। पिपरहवा अवशेषों की घर वापसी न केवल भारत की सांस्कृतिक शक्ति का प्रमाण है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक महत्ता को भी पुनः स्थापित करती है। यह प्रदेश आज भी पूरी दुनिया को शांति, करुणा और सहअस्तित्व का संदेश देता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी 127 वर्षों बाद भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों की भारत वापसी का स्वागत किया था और इसे राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक गर्व का क्षण बताया था।
अवशेषों का महत्व
इन अवशेषों में भगवान बुद्ध की अस्थियां, क्रिस्टल की पेटिकाएं, स्वर्णाभूषण और रत्न, बलुआ पत्थर का संदूक शामिल हैं। ब्राह्मी लिपि के अभिलेख इन्हें सीधे शाक्य वंश से जोड़ते हैं। इस संबंध में गॉदरेज इंडस्ट्रीज़ ग्रुप के कार्यकारी उपाध्यक्ष पिरोजशा गॉदरेज ने कहा कि पिपरहवा अवशेषों की वापसी केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए शांति और करुणा का संदेश है।
उल्लेखनीय है कि 25 से 28 सितंबर तक एलिस्ता शहर काल्मिकिया में राष्ट्रीय संग्रहालय की ओर से भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को दर्शाने वाले मूल कलात्मक शैलियों की कृतियों की प्रतिकृतियां प्रदर्शित की जाएगी। इसी प्रदर्शनी में पिपरहवा अवशेषों को भी प्रदर्शित किया जाएगा। इस मौके पर एक लघु वृत्तचित्र भी प्रदर्शित किया जाएगा। काल्मिकिया ऐसा क्षेत्र है, जहां बौद्ध जनसंख्या बहुतायात में है, यहां बौद्ध धर्म केवल धर्म ही नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है।
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(Udaipur Kiran) / मोहित वर्मा
