Madhya Pradesh

कुण्डलिनी का जागरण ले जाता है निर्विचारिता की ओर: दीपा गोखले

कुण्डलिनी का जागरण ले जाता है निर्विचारिता की ओर: दीपा गोखले

उज्जैन, 20 सितंबर (Udaipur Kiran News) । मध्य प्रदेश के उज्जैन में कुण्डलिनी का जागरण निर्विचारिता की ओर ले जाता है। जब व्यक्ति निर्विचार होता है तो वह न तो भूतकाल में होता है और नही भविष्य काल में जाता है। वह केवल वर्तमान में जीता है। वर्तमान में रहनेवाला मनुष्य ही जग को जीत लेता है। यह सब होता है सहजयोग ध्यान पद्धति अपनाने के बाद। कुण्डलिनी सहस्त्रार पर अपना काम करने लगती है,जिसे आत्मा का परमात्मा से मिलन कहा जाता है। तब हम एकाकार होकर चेतना का आनंद लेने लगते हैं।

यह बात दीपा गोखले,महू ने सहजयोग केंद्र,उज्जैन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय निर्मल ज्ञान प्रोग्राम के दूसरे दिन शनिवार के सत्र को संबोधित कर रहते हुए कही। देवास मार्ग स्थित राजेंद्र सूरीश्वर शोध संस्थान में आयोजित इस कार्यशाला में प्रदेशभर के 300 से अधिक सहजयोगी भाई-बहन सहजयोग प्रणेता माताजी निर्मला देवी द्वारा प्रणीत ध्यान पद्धति के माध्यम से अपने उत्थान में जुटे हुए हैं।

ध्यान का लक्ष्य शांति: कार्तिकेय

कार्यशाला को संबोधित करते हुए बैंगलुरू के कार्तिकेय मेहरा ने कहाकि ध्यान का लक्ष्य शांति होता है। जब तक व्यक्ति ध्यान नहीं करता है,उसका मन चल-विचल होता है। ध्यान करना शुरू करते ही उसका मन स्थिर होने लगता है। उसके बोलेने,देखने और समझने की आंतरिक शक्ति में इजाफा होने लगता है। धीरे-धीरे वह योगी बन जाता है और उसके सामने घटित होनेवाली सारी बातें मात्र दृश्य होती है तथा वह दृष्टा हो जाता है। यह वह अंतिम सत्य है,जिसे ऋषि-मुनियों ने बरसो बरस कंदराओं में तपस्या करके पाया था। इसे माताजी निर्मला देवी ने सहजयोग के माध्यम से जन सुलभ बना दिया है।

मैंंं को भूलकर हम पर आना होगा: प्रद्योत

बैंगलुरू निवासी प्रद्योत वर्मा ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहाकि व्यक्ति में अहंकार और प्रति अहंकार,दोनों काम करते हैं। इसके बीच उसका पूरा जीवन निकल जाता है। वह मैं में लगा रहता है,जबकि हमारी संस्कृति विश्व बंधुत्व की है याने हम की है। जब व्यक्ति अपना अहंकार और प्रति अहंकार त्याग देता है तो उसे सभी लोग अपने लगते हैं। उसके भीतर का अहंकार क्षमा में बदल जाता है। आज समय की मांग है कि हम क्षमा करें,प्रेम करें और शांति स्थापित करें। माताजी निर्मला देवी ने अपने प्रवचन में कहा है कि ईश्वर की सबसे बड़ी देन आनंद है,जिसे पाने में व्यक्ति भागता रहता है,लेकिन कभी अपने अंदर झांककर विश्लेषण नहीं करता है। शांति उसके अंदर ही है,बस उसे निकालकर बाहर लाना है। इसके लिए क्रोध और ईष्र्या को त्यागना है।

युवा वर्ग उन्नति के लिए करें ध्यान: अनिंधा राय

बैंगलुरू निवासी अनिंधा राय ने कहाकि आज का युवा उन्नति को करना चाहता है लेकिन वह उन्नति के मार्ग पर जाने हेतु किसी न किसी उठापटक में लग जाता है। जबकि उसे चाहिए कि वह सबसे पहले अपना ध्यान केंद्रीत करे लक्ष्य की ओर बढऩे के लिए। जब वह ध्यान करने लगता है तो उसकी कुण्डलिनी का उत्थान होता है। यह उत्थान उसमें जाग्रति लाता है। यही जाग्रति उसके मन को स्थिर कर लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार होती है। निर्विचारिता में पढ़ा गया एक-एक शब्द मस्तिष्क में अमिट छाप बन जाता है। यह वैज्ञानिक विश्लेषण है कि परीक्षा हो या साक्षात्कार, ध्यान योग करनेवाले युवा-युवति हमेशा उत्तीर्ण होते हैं।

चित्त-चेतना और आत्मा: बृजेश पाण्डेय

कानपुर निवासी बृजेश पाण्डे ने कहाकि ईश्वर ने हर एक व्यक्ति के अंदर चित्त-चेतना और आत्मा के रूप में स्वयं की अभिव्यक्ति दी है। जहां आत्मा, परमात्मा/सदाशिव का प्रतिबिंब है वहीं चित्त, ह्दय में विराजीत होता है जोकि ब्रम्हदेव का स्वरूप होता है। चेतना हमारे मस्तिष्क में होती है। मनुष्य में ये तीनों चीजें एकीकृत नहीं होती है। सहजयोग के माध्यम से ये एकीकृत हो जाती है। यही विकास की अवस्था कहलाती है याने जिस सकारात्मक काम में हाथ डालो वह पूरा हो जाता है।

साक्षी भाव तपस्या का दूसरा रूप: कुलकर्णी

इंदौर निवासी भरत कुलकर्णी ने कहाकि साक्षी भाव तपस्या का दूसरा रूप है। व्यक्ति जब अपने चित्त को साक्षी भाव से देखता है तो वह अपने अंदर स्थित सारे दुर्गुणों को छोड़ देता है। उसका शरीर शुद्ध, शरीर में स्थित सातों चक्र निर्मल और आत्मा प्रकाशमान हो जाती है। इसके बाद व्यक्ति केवल ओर केवल स्नेह को ही लोगों के बीच बांटने लगता है। जिस व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति प्रेम का भाव नहीं है,वह साधक हो ही नहीं सकता।

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(Udaipur Kiran) / ललित ज्‍वेल

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