कोलकाता, 20 सितम्बर (Udaipur Kiran) । राहुल गांधी ने बिहार में जो भूमिका निभाई है, वही वह पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों असम, केरल और तमिलनाडु में भी निभाएंगे, जहां अगले साल चुनाव होने है। बिहार में राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन ने कांग्रेस को राजनीतिक बढ़त दी है और पूरे इंडी गठबंधन को मजबूती प्रदान की है। यह बात कांग्रेस नेता और अर्थशास्त्री प्रसेनजीत बोस ने शनिवार को कही।
हाल ही में, कांग्रेस में शामिल हुए बोस ने कहा कि चुनाव आयोग यदि बिहार की तरह ही पश्चिम बंगाल में वही गलतियां आगामी विधानसभा चुनाव मेंकरता है ताे यहां भी कांग्रेस सांसद राहुल गांधी स्वयं विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करेंगे।
बोस ने कहा कि हालांकि पश्चिम बंगाल चुनाव में भ्रष्टाचार, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अत्याचार और भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासियों पर कथित उत्पीड़न जैसे मुद्दे हावी रहेंगे, लेकिन जैसे ही एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होगी, यह केंद्र में आ जाएगा।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ संभावित तालमेल पर उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से सत्तारूढ़ दल पर निर्भर करेगा। ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी लगातार ‘एकला चलो रे’ की नीति पर चल रहे हैं। कांग्रेस सीट बंटवारे के लिए भीख का कटोरा लेकर उनके पास नहीं जाएगी।
बोस ने कहा कि बिहार में हुए विरोध और उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद संभव है कि चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल में नरम रुख अपनाए, लेकिन उन्होंने टीएमसी प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि उसकी निष्पक्ष चुनाव कराने की साख शून्य है। राज्य प्रशासन पूरी तरह टीएमसी के दबाव में चलता है। बीएलओ जो मूल रूप से तृणमूल से जुड़े होते हैं, उन पर निष्पक्ष एसआईआर कराने का भरोसा नहीं किया जा सकता।
बोस ने आशंका जताई कि जिस तरह बिहार में महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, उसी तरह बंगाल में विपक्षी दलों के समर्थकों के नाम काटे जा सकते हैं। उन्होंने कहा, “कांग्रेस एक वैचारिक लड़ाई लड़ रही है, जिसका केंद्र बिंदु संविधान है, लेकिन टीएमसी के पास ऐसा कोई संकल्प नहीं है।”
इंडिया गठबंधन के मुद्दे पर बोस ने कहा कि बिहार में विपक्षी एकजुटता किसी ठोस मुद्दे पर बनी है, जबकि पश्चिम बंगाल में अब तक ठोस साझा कार्यक्रम की कमी रही है। लोग उन गठबंधनों पर भरोसा नहीं करते जिनके पास ठोस राजनीतिक कार्यक्रम न हो। बिहार में साझा एजेंडा है, जिससे व्यापक राजनीतिक एकता बनी है और आगे सीट-बंटवारे में यह विश्वसनीयता भी बनेगी, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा कभी नहीं हुआ।
भविष्य में अपनी भूमिका पर कहा कि वह पार्टी को जिस रुप में सेवा देने का अवसर मिलेगा, उसे निभाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, चाहे रणनीतिकार के रूप में हो या फील्ड एक्टिविस्ट के तौर पर, मैं हर जिम्मेदारी के लिए तैयार हूं। यदि पार्टी चाहेगी ताे चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार हूं।
जेएनयू छात्र राजनीति से चर्चित और एसआईआर के प्रमुख रणनीतिकार रहे बोस ने 15 सितम्बर को कोलकाता में कांग्रेस की सदस्यता ली थी। इससे पहले वे 2012 में मार्क्सवाद कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) से अलग हो गए थे, जब पार्टी ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का समर्थन किया था।———————-
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
