
रांची, 19 सितंबर (Udaipur Kiran) । अखिल भारतीय संपूर्ण क्रांति राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सह पूर्व सांसद डॉ सूरज मंडल ने कहा कि 1912 से पहले बंगाल प्रेसीडेंसी तक कुर्मी, खेतौरी और घटवाल जैसी जातियां अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में आती थींं। उन्हाेंने कहा कि लेकिन बंगाल के विभाजन के बाद ही जब बिहार का गठन हुआ तो, कुर्मी, खेतौरी और घटवाल को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में डाल दिया गया। यह बिल्कुल गलत निर्णय था।
मंडल ने कहा कि सुंडी, तेली, कलवार, कहार, सोनार, कुम्हार, मोगरा, रौनियार जैसी जातियां अनिश्चित जाति की श्रेणी में थीं। लेकिन उन्हें भी अन्य पिछड़े वर्ग की श्रेणी में डाल दिया गया। मंडल ने शुक्रवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि बंगाल में अब भी मंडल समुदाय को तथाकथित संभ्रांत लोग नवशूद्र के नाम से ही संबोधित करते हैं। मंडल ने कहा कि 1912 तक बंगाल प्रेसीडेंसी में न सिर्फ वर्तमान पश्चिम बंगाल, बल्कि बिहार, झारखंड, ओडिशा जैसे प्रदेश शामिल थे और ठीक उसी उसी समय की स्थिति के अनुरूप झारखंंड में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में उन जातियों को शामिल करने के बाबत शीघ्र निर्णय लेने की जरूरत है जो पहले उस श्रेणी में शामिल थे। क्योंकि तब बंगाल प्रेसीडेंसी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति की जो स्थिति थी। वह आज भी असम, त्रिपुरा, आेेेेेडिशा जैसे प्रदेशों में कायम है।
उन्होंने कहा कि कुर्मी समुदाय की ओर स्वयं को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में डालने की मांग का समर्थन करते हुए डॉ मंडल ने कहा कि यह बिल्कुल न्यायोचित मांग है। लेकिन वर्तमान स्थिति में यदि केवल कुर्मी ही आंदोलन करेंगे तो उस मांग का कोई भी जमीनी प्रभाव नहीं पड़नेवाला है। उन्होंने कहा कि बंगाल विभाजन के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जिन-जिन जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग की श्रेणी में डाल दिया गया है। उन सभी को साथ मिलकर अब पुरजोर आंदोलन करने की जरूरत है।
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(Udaipur Kiran) / Manoj Kumar
