Uttar Pradesh

बीएचयू के डॉ. चन्दन श्रीवास्तव की अगुवाई में छह सदस्यीय टीम को आईसीएसएसआर से मिला 1.20 करोड़ का रिसर्च अनुदान

फोटो प्रतीक

वाराणसी, 19 सितंबर (Udaipur Kiran) । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के महिला महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. चन्दन श्रीवास्तव के नेतृत्व में छह सदस्यीय अंतरविषयी शोध टीम को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर ) से नई दिल्ली द्वारा 1 करोड़ 20 लाख रुपये अनुसंधान अनुदान स्वीकृत किया गया है। यह अनुदान ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय श्रम प्रवास का सांस्कृतिक इतिहास विषयक चार वर्षीय कोलैबोरेटिव रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए प्रदान किया गया है।

इस महत्वाकांक्षी शोध परियोजना में बीएचयू के अलावा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ शामिल हैं। इन सभी शोधकर्ता फैकल्टी सदस्य विभिन्न शैक्षणिक विषयों — भाषा, शिक्षा, इतिहास और वाणिज्य से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त, लंदन से भी दो शोधकर्ता इस परियोजना का हिस्सा हैं। परियोजना के निदेशक की भूमिका में डॉ. चन्दन श्रीवास्तव हैं, जबकि समन्वयक की जिम्मेदारी महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. निरंजन सहाय निभा रहे हैं।

‘गिरमिटिया’ विरासत पर वैश्विक शोध की पहल

यह शोध परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2024-25 में मॉरीशस, फिजी और कैरिबियाई देशों की ऐतिहासिक यात्राओं के दौरान दिए गए उस आह्वान से प्रेरित है, जिसमें उन्होंने ‘गिरमिटिया’ श्रमिकों की विरासत पर वैश्विक स्तर पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करने की बात कही थी। इसी आलोक में चार विश्वविद्यालयों की इस टीम ने आईसीएसएसआर को प्रस्ताव भेजा, जो गहन चयन प्रक्रिया से गुजरने के बाद अनुमोदित हुआ।

इस अध्ययन के अंतर्गत शोधार्थी फिजी, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों के साथ-साथ ब्रिटेन, आयरलैंड, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न अभिलेखागारों से ऐतिहासिक आंकड़े एकत्र करेंगे।

बहुआयामी दृष्टिकोण से होगा अध्ययन

प्रोजेक्ट के शैक्षिक पक्षों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. चन्दन श्रीवास्तव ने बताया कि गिरमिटिया प्रवास का इतिहास न केवल इतिहासकारों के लिए, बल्कि भाषा वैज्ञानिकों, शिक्षाशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण शोध क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा और भाषाओं के वैश्विक प्रसार में प्रवासी भारतीय समुदाय की भूमिका को शोध के जरिए विस्तार से समझना आवश्यक है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को मिलेगा नया आधार

यह शोध परियोजना भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने में सहायक होगी। इसके निष्कर्ष भारत की विदेश नीति और सांस्कृतिक कूटनीति में साक्ष्य-आधारित योगदान दे सकते हैं।

डॉ. श्रीवास्तव ने प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देने में विश्वविद्यालय के सेल (सृक्क) की भूमिका की सराहना की, जो समयबद्ध सूचनाएं और तकनीकी सहयोग प्रदान करता है। साथ ही उन्होंने कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी, महिला महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रीता सिंह, तथा शिक्षा संकाय की अध्यक्षा प्रो. अंजलि बाजपेयी को निरंतर मार्गदर्शन और समर्थन के लिए विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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