
-भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आयुर्वेद विषय पर संगोष्ठी
प्रयागराज, 19 सितम्बर (Udaipur Kiran) । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय एवं विश्व आयुर्वेद मिशन के संयुक्त तत्वावधान में तत्वावधान में हिन्दी पखवाड़ा के अंतर्गत आयुर्वेद दिवस समारोह में भारतीय ज्ञान परम्परा एवं आयुर्वेद विषय पर एक वैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। मुख्य वक्ता विश्व आयुर्वेद मिशन के संस्थापक अध्यक्ष एवं आरोग्य भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो.(डॉ.) गिरीन्द्र सिंह तोमर ने वेदों को सृष्टि के उत्पत्ति काल से ही ज्ञान का स्रोत बताया। उन्हाेंने कहा कि अथर्ववेद का उपांग होने के नाते आयुर्वेद की प्राचीनता स्वतः प्रमाणित है।
उन्होंने कहा कि भारतीय वांग्मय में आयुर्वेद, योग, प्राकृत विज्ञान, गणित, ज्योतिष, खगोल विज्ञान, विमान शास्त्र एवं धातु विज्ञान की समृद्ध, बहुआयामी, अद्भुत एवं अकल्पनीय ज्ञान परम्परा का दिग्दर्शन होता है। इसकी वैज्ञानिकता आज सम्पूर्ण विश्व मानने लगा है। मंत्र दृष्टा ऋषियों ने अपनी दिव्य दृष्टि एवं अनुभव से जो ज्ञान तत्कालीन ग्रंथों में उकेरा है, वह आज के वैज्ञानिक मापदंडों पर पूरी तरह खरा उतर रहा है। डॉ. तोमर ने आगे कहा कि आयुर्वेद मात्र एक चिकित्सा विधा ही नहीं सम्पूर्ण जीवन दर्शन है। इसकी गुणवत्ता पूर्ण औषधियां जहां प्रभावी एवं निरापद हैं, वहीं इसकी आदर्श जीवनशैली वैश्विक धरातल पर अनुकरणीय एवं लोकप्रिय सिद्ध हो रही हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान परम्परा न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज भी विज्ञान, चिकित्सा, गणित और अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। भारत के मनीषियों और वैज्ञानिकों का योगदान आने वाले समय में भी अमूल्य होगा। भारतीय ज्ञान की यह परम्परा हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है। सारस्वत अतिथि के रूप में वैश्विक हिन्दी महासभा के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विजयानंद ने हिन्दी के महत्व पर प्रकाश डाला एवं काव्य पाठ किया। डॉ. केदार नाथ उपाध्याय ने कहा कि आयुर्वेद की बढ़ती हुई लोकप्रियता को शिखर तक पहुंचाने के लिए इसे जन-जन तक पहुंचाना होगा। डॉ. शांति चौधरी ने आयुर्वेद को निरापद एवं प्रभावी चिकित्सा पद्धति बताते हुए इसे समय की मांग बताया। संस्थान के निदेशक डॉ. ललित कुमार त्रिपाठी ने अध्यक्षता करते हुए आयुर्वेद को देश की अमूल्य धरोहर बताया। कहा कि आयुर्वेद हमारी परम्परा में इस तरह समाया हुआ है कि इसे भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली से पृथक नहीं किया जा सकता। हमारी ज्ञान परम्परा इतनी समृद्ध एवं शाश्वत है कि इसे आज के वैज्ञानिक युग में भी नकारा नहीं जा सकता। हर नवीन अन्वेषण के मूल में भारतीय ज्ञान परम्परा के छिपे हुए बीज हमारी समृद्ध धरोहर के प्रमाण दे रहे हैं।राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय हंडिया के चिकित्साधिकारी डॉ. अवनीश पाण्डेय ने कहा कि आयुर्वेद दिवस को मनाने के लिए आयुष मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देश के अनुसार आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक आयुर्वेद पहुंचाना है। राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय हण्डिया के प्राचार्य डॉ. केदार नाथ उपाध्याय, मोतीलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज की पूर्व शोध अधिकारी डॉ. शांति चौधरी एवं क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी डॉ. मनोज कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अवनीश पाण्डेय ने एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अंकित मिश्रा ने किया। इस अवसर पर डॉ. अवधेश कुमार त्रिपाठी, डॉ. आशीष कुमार मौर्य, डॉ.सुरेश पाण्डेय, डाॅ.अंजनी कुमार, डॉ.यशवंत त्रिवेदी, अश्वनी लंके
(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
