
धर्मशाला, 18 सितंबर (Udaipur Kiran) । पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ साहित्यकार शांता कुमार ने भगवत गीता और स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को अपने जीवन का मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि आज की राजनीति मूल्यहीन होती जा रही है, इसे रोकना देश की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शांता कुमार ने यह बात वीरवार को उनकी आत्मकथा निज पथ का अविचल पंथी के पंजाबी में अनुवादित पुस्तक के विमोचन अवसर पर कही।
गौर है कि इस आत्मकथा में उनके किशोरावस्था में जेल यात्रा, राष्ट्रसंघ में भारत का प्रतिनिधित्व, हिमाचल प्रदेश में अंत्योदय योजना की शुरुआत और निजी क्षेत्र के सहयोग से बिजली परियोजनाएं शुरू करने जैसे प्रेरक प्रसंगों का समावेश है।
गौर हो कि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पंजाबी एवं डोगरी विभाग की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की आत्मकथा “निज पथ का अविचल पंथी” का पंजाबी भाषा में अनुवाद किया गया है। वीरवार को इसी पुस्तक का धौलाधार परिसर के सभागार में विमोचन किया गया। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ साहित्यकार शांता कुमार, विशिष्ट अतिथि लोकसभा सांसद डॉ राजीव भारद्वाज, मुख्य वक्ता केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हरमोहिंदर सिंह बेदी सहित कुलपति प्रो. एसपी बंसल मौजूद रहे।
शांता कुमार की आत्मकथा एक पुस्तक नही बल्कि प्रेरणास्रोत है : कुलपति
वहीं संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. बंसल ने कहा कि शांता कुमार ने अंत्योदय योजना जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की, जो आज आत्मनिर्भर और विकसित भारत की नींव मानी जाती हैं। उनका विश्वास है कि समाज को केवल सिद्धांत आधारित राजनीति से ही बदला जा सकता है, छल कपट से नहीं। उनकी आत्मकथा निज पथ का अविचल पंथी केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। पुस्तक का पंजाबी अनुवाद विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है।
वहीं कुलाधिपति प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के जीवन को युवाओं के लिए प्रेरणादायक बताया। उन्होंने कहा कि अब पंजाबी भाषा में उनकी जीवनी उपलब्ध होगी यह लोगों के लिए सौभाग्य की बात है। इसके लिए उन्होंने अनुवादक डा. नरेश को बधाई दी।
वाई.एस.पी. विश्वविद्यालय नौणी सोलन के कुलपति राजेश्वर चंदेल ने कहा कि हम सबके प्रेरणा पुंज शांता कुमार का जीवन उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो आज की राजनीति में दुर्लभ होते जा रहे हैं। उनका संयम, समर्पण और सादगी युवाओं के लिए आदर्श है। उन्होंने शांता कुमार से हुई पहली मुलाकात, उनके छात्र जीवन की प्रेरणाएं और विभिन्न आंदोलनों में उनका नेतृत्व भावपूर्ण रूप में साझा किया। उन्होंने कहा कि शांता जी से हमने सीखा कि संघर्ष केवल विरोध नहीं, बल्कि संस्था, समाज और देश के लिए आचरण की मर्यादा में रहकर किया जाना चाहिए।
शांता कुमार एक राजनेता नही, बल्कि राजऋषि : राजीव भारद्वाज
इस मौके पर लोकसभा सांसद डा. राजीव भारद्वाज ने कहा कि शांता कुमार केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि ‘राजऋषि’ हैं, जिनसे हमने राजनीति ही नहीं, समाजसेवा, प्रतिबद्धता और जीवन के मूल्य सीखे हैं। उनके साथ 42 वर्षों का सानिध्य मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने कहा कि मैं अर्जुन बनकर दीक्षा तो नहीं ले सका, लेकिन एकलव्य की तरह दूर से देखकर उनके मार्ग का अनुसरण करने का प्रयास अवश्य किया है।
(Udaipur Kiran) / सतेंद्र धलारिया
