
नैनीताल, 18 सितंबर (Udaipur Kiran) । नैनीताल जनपद के थाना काठगोदाम क्षेत्र में वर्ष 2014 में पिथौरागढ़ की निवासी 7 वर्षीय ‘लाड़ली’ की शादी समारोह के दौरान अपहरण कर दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में जिला न्यायालय नैनीताल से फांसी की सजा पाये अख्तर अली उर्फ शमीम उर्फ राजा और प्रेमपाल वर्मा को उच्चतम न्यायालय ने गत 10 सितंबर को दोषमुक्त कर दिया है।
इसके बाद पिथौरागढ़ से लेकर हल्द्वानी तक बच्ची के परिजनों एवं जनता का तीव्र विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से सामने आया। इसके बाद उत्तराखंड सरकार उच्चतम न्यायालय में पुर्नविचार याचिका दायर करने पर विचार कर रही है। इस संबंध में प्रदेश के डीजीपी यानी पुलिस उपमहानिरीक्षक-अपराध एवं कानून व्यवस्था ने नैनीताल जनपद के एसएसपी को उच्चतम न्यायालय में पुर्नविचार याचिका योजित किये जाने के संबंध में प्रस्ताव मांगा है।
इस संबंध में जनपद के जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी-सुशील कुमार शर्मा, जो कि अब तक 5 मामलों में अपराधियों को अपनी मजबूत पैरवी से फांसी की सजा दिलवा चुके हैं, ने बताया कि इस मामले में तीन आरोपित थे, जिनमें से अख्तर अली को उनकी पैरवी में जिला एवं सत्र न्यायालय से भारतीय दंड संहिता की धारा 376ए, 363, 201 एवं पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4, 5/6 व 7/8 तथा आईटी एक्ट के तहत अन्य सजाओं के साथ मृत्यु दंड तथा प्रेम पाल वर्मा को भारतीय दंड संहिता की धारा 21एवं आईटी एक्ट की धारा 66सी के तहत 7 वर्ष की सजा से दंडित किया गया था, जबकि जूनियर मसीह नाम का आरोपित दोषमुक्त घोषित किया गया था।
आरोपितों के उच्चतम न्यायालय से दोषमुक्त होने के मुख्य आधार
इस मामले में आरकोपित के उच्चतम न्यायालय से दोषमुक्त होने के मुख्य आधार यह रहे ििक अभियोजन मामले में परिस्थितजन्य साक्ष्यों को एक कड़ी के रुप में नहीं जोड़ा गया है। घटना का कोई चश्मदीद साक्ष्य नहीं पेश किया गया। पीड़िता को बंदूक की नोक पर ले जाना बताया गया लेकिन किसी हथियार की बरामदगी नहीं की गई।
पीड़िता के रिश्ते के भाई जिसने सबसे पहले एसएसपी नैनीताल को बच्ची के शव के मिलने के बारे में बताया उसको गवाह नहीं बनाया गया, और न्यायालय में पेश नहीं किया गया, जबकि वह घटना का सबसे मुख्य गवाह और कड़ी हो सकता था। पुलिस को घटनास्थल से कोई खून के धब्बे नहीं मिले, जबकि मृतका की मृत्यु अत्यधिक रक्तश्राव से होना पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया। प्राथमिकी में बच्ची के बाद लड़कों की तरह बताये गये, जबकि घटना स्थल पर अभियुक्त की निशानदेही पर उसका हेयर बैण्ड मिलना बताया गया।
आरोपित ख्तर अली को लुधियाना में भीड़भाड वाले शहर में पकड़ना तथा पहचानना बताया गया लेकिन लुधियाना के स्थानीय पुलिस स्टेशन में नैनीताल पुलिस ने आमद नहीं करायी। अभियोजन की कहानी के अनुसार तीन अभियुक्तों द्वारा बलात्कार करना कहा गया है, जबकि विधि विज्ञान प्रयोगशाला से केवल एक ही अभियुक्त द्वारा दुष्कर्म करने की पुष्टि हुई। इन कारणों से अभियोजन की कहानी में संदेह उत्पन्न हुआ। इसके अतिरिक्त भी पुलिस की विवेचना में कई कमियां सामने आयीं।
पुर्नविचार याचिका के आधार
श्री शर्मा के अनुसार घटना के बाद अभियुक्त का फरार होकर भाग जाना संदेह उत्पन्न करता है तथा घटना में उनकी संलिप्तता को दर्शाये जाने का महत्वपूर्ण आधार है। घटना के एक महत्वपूर्ण गवाह ने आरोपित अख्तर अली को अपने डम्पर का घटना के दिन भी ड्राईवर होना स्वीकार किया, जबकि रेलवे के एक कर्मचारी ने उसके 21 नवंबर 2014 को हल्द्वानी से लुधियाना की रेलगाड़ी में जाने की पुष्टि की।
इससे अभियुक्त का घटना स्थल से अपराध कर भागने की पुष्टि होती है, लेकिन इस तथ्य को उच्चतम न्यायालय ने विचार में नहीं लिया है। यह भी बताया कि इस घटना में साक्ष्य की कड़ी के रूप में एफएसएल प्रयोगशाला की डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट, सीसीटीवी की फुटेज, सीडीआर भी उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर अभियुक्त को सजा दी जा सकती थी। यह भी बताया कि आरोपित ने घटना के बाद किसी अन्य के सिम का फोन में उपयोग किया, ऐसा ही अधिकतर मामलों में बड़े अपराधी करते हैं, इससे भी अभियुक्त के अपराध के बाद के व्यवहार की पुष्टि होती है।
यह नवीनतम भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 6 के अन्तर्गत भी आती है। इसके अतिरिक्त एक दुकानदार के बयान भी अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है, जिसमें उसके द्वारा अभियुक्त का नशे की हालत में उस जगह घूमते एवं खरीदारी करते हुए देखा था।
(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी
