
नई दिल्ली, 17 सितंबर (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय ने पराली जलाए जाने पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि अगर कुछ किसानों को जेल भेजा जाए, तो दूसरों को सबक मिलेगा और इस आदत पर लगाम लगेगी। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हर साल दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों की शुरुआत से पहले ही प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, जिसकी एक वजह पराली भी है।
न्यायालय ने कहा कि वो सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में निर्माण कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इसका दिहाड़ी मजदूरों की आजीविका पर बुरा असर पड़ता है। न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को निर्देश दिया कि वो राज्यों के साथ मिलकर तीन महीने के अंदर इस समस्या का कोई वैकल्पिक हल निकाले, जिससे प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ मजदूरों का काम भी जारी रह सके। न्यायालय ने कि निर्माण पर रोक लगाने का आदेश प्रतिकूल प्रभाव वाला है, क्योंकि इससे कई श्रमिकों को मुआवजा नहीं मिल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले श्रमिक इस अवधि के दौरान बिना किसी काम के होते हैं। इस न्यायालय में कई ऐसी याचिकाएं आयी हैं, जिनमें आरोप लगाया गया है कि मुआवजे का उचित भुगतान नहीं किया गया है।
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने कहा कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सब्सिडी के साथ ही मशीनें भी दी गई हैं, लेकिन किसान बहाना बनाते हैं। कुछ किसान कहते हैं कि उन्हें ऐसी जगह पराली जलाए जाने के लिए कहा जाता है, जहां सैटेलाइट नजर नहीं रखता।
इससे पहले 23 अक्टूबर, 2024 को न्यायालय ने कहा था कि केंद्र, पंजाब और हरियाणा सरकार को याद रखना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को प्रदूषण मुक्त जीवन जीने का अधिकार है। प्रदूषण पर लगाम न लगने के चलते मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है। न्यायालय में भी ये सुनवाई नागरिकों के इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए हो रही है। सरकार की जवाबदेही बनती है कि कैसे वो प्रदूषण मुक्त वातावरण देकर नागरिकों के इस मौलिक अधिकार की रक्षा करें।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी
