Uttrakhand

बदरी-केदार की संपत्ति पर अवैध कब्जे, कब हाेगी मुक्त करने की कार्रवाई

बद्रीनाथ-केदारनाथ

ज्योतिर्मठ। 17 सितंबर (Udaipur Kiran) । श्री बद्रीनाथ एवं श्री केदारनाथ का संचालन करने वाली श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति देशभर के कई राज्यों के साथ ही उत्तराखंड मे विद्यमान अपनी संपत्ति को आखिर कब्जा मुक्त क्यों नहीं कर पा रही है, वो भी तब जब डबल इंजन की सरकारें हो, यदि समय रहते यह समिति अपनी संपत्तियों को कब्जा मुक्त नहीं करा सकी तो वह दिन भी दूर नहीं जब बची खुची संपत्ति पर भी अतिक्रमण कारियों का कब्जा होगा और भारी भरकम व पावरफुल कही जाने वाली बदरी -केदार मंदिर समिति तमाशबीन बनकर रह जाएगी। किसी भी मंदिर प्रबंधन का यह पहला दायित्व है कि वे मंदिरों तक पहुँचने वाले श्रद्धालुओं को सुगम व सुलभ दर्शन की व्यवस्था सुनिश्चित करें।

पिछले कई वर्षों से बीकेटीसी देशभर मे अपनी संपत्तियों को खंगाल कर चिन्हित कर चुकी है, उत्तराखंड के गढ़वाल व कुमायूँ मे ही अधिकांश संपत्तियों पर कब्जा है, कब्जा मुक्त कराने के प्रयास भी हुए, विभिन्न न्यायालयों मे वाद भी दायर हुए, पर सवाल यह है कि भगवान बद्रीविशाल व बाबा श्री केदार के नाम दानस्वरूप प्राप्त हुई इन महत्वपूर्ण संपत्तियों पर कब्जा जमाएं बैठे लोगों से आखिर कब्जा कब हटेगा ?

अगर श्री बदरी-केदार मंदिर समिति जैसी पावरफुल कमेटी डबल, ट्रिपल इंजन की सरकारों के होते हुए मंदिर समिति के नाम दर्ज कागजात सम्पत्ति को कब्जा मुक्त नहीं करा पा रही है, ऐसे तो मंदिर समिति की भूमि व संपत्ति पर कब्जे होते रहेंगे और मंदिर समिति के अधीनस्थ मंदिरों व संपत्तियों की बेहतर सुरक्षा व पूजा व्यवस्थाओं के लिए गठित होनी वाली समितियां अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करती रहेगी और कब्जाधारी मौज करते रहेंगे।

उत्तरप्रदेश के अमीनाबाद-लखनऊ, फतेहपुर की भूमि-भवन तो मंदिर समिति के कब्जे मे आ चुके हैं, महाराष्ट्र के चितली-बुढ़ाना की भूमि मुक्त कराने की कार्यवाही महाराष्ट्र हाई कोर्ट मे गतिमान है, इनके अलावा गढ़वाल व कुमायूँ मे कई संपत्तियाँ बदरी-केदार मंदिर समिति के नाम तो है पर

कब्जाधारियों के कब्जे मे है, जिन्हें खाली कराने के प्रयास तो जारी हैं परन्तु जिस द्रुत गति से कार्यवाही होनी चाहिए उसमे अभी कमी देखी जा रही है।

उत्तराखंड मे ही द्वाराहाट, बांसुरी सेरा, पनेर गाँव, भंडार गाँव, डोभालवाला आदि अनेक स्थानों पर आज भी कब्जाधारियों के कब्जे बरकरार है।

बदरी -केदार मंदिर समिति ने अपनी संपत्तियों के रख रखाव, सुरक्षा व कब्जा मुक्त कराने के लिए संपत्ति प्रकोष्ठ का गठन किया हुआ है, जिसमें एक संपत्ति निरीक्षक का पद भी सृजित है और समय समय पर राजस्व विभाग मे सेवारत भूमि व संपत्ति से सम्बंधित मामलों के जानकर को भी प्रतिनियुक्ति पर रखा गया है, इसके अलावा विभिन्न न्यायालयों भूमि व संपत्ति से सम्बंधित मामलों के निपटान के लिए विधि प्रकोष्ठ भी है जिसमें एक विधि अधिकारी कार्यरत है, इतना सब कुछ होने के बाद उत्तराखंड सहित अन्य प्रदेशों मे भूमि, भवन आदि कब्जा मुक्त हो पाए…?

अब तो स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि कब्जा मुक्त करना तो दूर विभिन्न मंदिरों की चौखट तक रोजगार के नाम पर अतिक्रमण हो रहे हैं, मंदिर समिति यदि अपनी ही सम्पत्ति पर से अतिक्रमण हटाने का प्रयास भी करती है तो किसी न किसी रूप मे विफल करने का षड्यंत्र कर दिया जाता है। यह स्थिति केवल श्री बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम व समिति के अन्य अधीनस्थ मंदिरों की ही नहीं अपितु देश के कुछ अन्य मंदिरों की भी कमोवेश यही स्थिति है, जहाँ श्रद्धालुओं को मंदिर दर्शन के लिए पहुंचना ही किसी चुनौती से कम नहीं होता है, हाल मे मंशा देवी मंदिर हरिद्वार मे हुई भगदड़ मे कई लोगों की जाने गई, जिसका अन्य कारणों मे एक प्रमुख कारण मंदिर तक पहुँचने का मार्ग अतिक्रमण से पटा था और घटना के बाद लोग सुरक्षित नहीं निकल सके।

हरिद्वार की घटना घटित होने के बाद जैसा कि सरकारों द्वारा फरमान जारी करने की रश्म अदायगी होती है वैसा ही हुआ घटना के कारणों की जाँच, दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन, और मंदिर तक के पहुँच मार्ग को अतिक्रमण मुक्त कराने के आदेश हुए और यह आदेश राज्य के सभी मंदिरों के लिए हुए लेकिन धरातल पर उपलब्धि शून्य। यहां यह उल्लेख करना भी जरुरी है कि कोई भी मंदिर वहाँ के स्थानीय लोगों की आर्थिकी का महत्वपूर्ण जरिया बना है, लोग मंदिरों के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं जो होना भी चाहिए लेकिन रोजगार के नाम पर किसी भी मंदिर की सम्पत्ति जो उस मंदिर प्रबंधन के नाम दर्ज कागजात हो उस पर स्थाई या अस्थाई कब्जा कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता।

(Udaipur Kiran) / प्रकाश कपरुवाण

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