
प्रयागराज, 16 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा कि जहां नाबालिग स्वेच्छा से वैध संरक्षकता छोड़ देती है, वहां धारा 361 भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती।
कोर्ट ने कहा अभियोजन यह तथ्य नहीं दे सका कि याची ने अपहरण किया था। मेडिकल जांच में पाया गया कि पीड़िता से सेक्स नहीं किया गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की एकलपीठ ने हिमांशु दूबे की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
थाना गौरी बाजार जिला देवरिया में अपहरण के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि याची उसकी लगभग 16 वर्षीय भतीजी को बहला-फुसलाकर भगा ले गया था। पीड़िता ने कहा कि उसके परिवार वालों ने उसे पीटा और बिजली का झटका भी दिया, जिससे वह घर से अकेली निकल गई। पुलिस थाने ले जाने से पहले वह दो दिन तक बिहार के सीवान में रही।
याची का तर्क था कि कथित पीड़िता ने मामले में उसकी संलिप्तता का आरोप नहीं लगाया था। राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि जांच के दौरान एकत्र साक्ष्यों के आधार पर याची के विरुद्ध धारा 363 आईपीसी के तहत आरोप पत्र दायर किया जा चुका है। उन्होंने संज्ञान आदेश को वैध बताया। कोर्ट ने कहा कि ’किसी नाबालिग को किसी व्यक्ति के साथ ले जाने’ और “किसी नाबालिग को उसके साथ जाने की अनुमति देने“ में अंतर है। जब कोई नाबालिग स्वेच्छा से घर से यह जानते हुए निकलती है कि वह क्या कर रही है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि अभियुक्त उसे ले गया है। कोर्ट ने कहा, अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता को आवेदक ने बहला फुसलाकर भगाया था।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
