
कानपुर, 16 सितम्बर (Udaipur Kiran) । कानपुर जैसे घनी आबादी वाले शहर में हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती लोगों और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर निर्माण कार्य के लिए रास्ता तैयार करना है। मेट्रो निर्माण का अर्थ केवल कंक्रीट और स्टील का ढांचा खड़ा करना नहीं है, बल्कि जनभागीदारी, संवाद और संवेदनशील योजना बनाना भी इसका अहम हिस्सा है। कई बार हमें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार डिज़ाइन और योजनाओं में परिवर्तन करने पड़े। इस महती कार्य को पूरा करना ह्यूमन इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह बातें मंगलवार को यूपीएमआरसी के प्रबंध निदेशक सुशील कुमार ने कही।
कानपुर मेट्रो ने निर्माण कार्य आरम्भ होने के बाद शहर के भीतर इंजीनियरिंग क्षमता के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। मेट्रो इंजीनियरों की मेहनत और दूरदर्शिता से आज कानपुर न केवल विकास की ओर तेजी से अग्रसर है, बल्कि इसकी जीवनशैली और यात्रा के तरीके भी व्यापक रूप से बदल रहे हैं। शहर के भीतर बड़ी संख्या में लोग अब निजी वाहनों की बजाय मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने लगे हैं। कानपुर के लिए विशेष रूप से ऐतिहासिक कहा जा सकता है, जब मई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झंडी दिखाकर पहली बार अंडरग्राउंड मेट्रो को नयागंज स्टेशन से रवाना किया। पांच अंडरग्राउंड स्टेशनों और टनल्स में सफर करने का अनुभव यात्रियों के लिए रोमांचक रहा। कानपुर के नए स्वरूप की कल्पना को मेट्रो ने हकीकत में बदल दिया।
उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (यूपीएमआरसी) के अंतर्गत कानपुर मेट्रो के कॉरिडोर-1 (आईआईटी से नौबस्ता) और कॉरिडोर-2 (सीएसए से बर्रा-8) का निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस दौरान कई ऐसी उपलब्धियां दर्ज की गईं, जो तकनीकी दृष्टिकोण से असाधारण मानी जा सकती हैं। बसंत विहार से किदवई नगर स्टेशन के बीच वायाडक्ट का निर्माण नौबस्ता फ्लाईओवर के ऊपर से करना एक बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती थी। इस चुनौती को पार करते हुए तीन रातों में 31 मई से दो जून तक छह स्टील बॉक्स गर्डर्स को बेहद सावधानीपूर्वक स्थापित किया गया। इसी प्रकार, बृजेंद्र स्वरूप पार्क के समीप सीसामऊ नाले के ऊपर 45 मीटर लंबे स्टील बॉक्स गर्डर्स का सफल परिनिर्माण किया गया, जो इस क्षेत्र की सबसे जटिल संरचनाओं में से एक रहा।
कॉरिडोर-1 के अंतर्गत आईआईटी से कानपुर सेंट्रल तक यात्री सेवाएं शुरू हो करने के बाद अगला लक्ष्य नौबस्ता तक मेट्रो सेवा का संचालन है। झकरकटी से कानपुर सेंट्रल के बीच टनलिंग कार्य अंतिम चरण में है। वहीं बारादेवी से नौबस्ता तक ट्रैक बिछाने का कार्य भी लगभग पूर्णता की ओर है। लगभग 8.60 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर-2 (सीएसए से बर्रा-8) का सिविल निर्माण कार्य अप्रैल 2024 में प्रारम्भ हुआ था। इसके एलिवेटेड और अंडरग्राउंड सेक्शनों में अब तक तीन-चौथाई पाइलिंग, पाइल कैप और पिलर निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं। पियर-कैप्स का 50 प्रतिशत से अधिक इरेक्शन कार्य भी पूरा हो चुका है। सीएसए परिसर स्थित कॉरिडोर-2 डिपो से काकादेव तक ‘डाउनलाइन’ टनलिंग संपन्न हो गई है और ‘अप-लाइन’ टनलिंग भी शीघ्र पूर्ण होने की उम्मीद है।
हाल ही में कॉरिडोर-1 (आईआईटी- नौबस्ता) के अंतर्गत चुन्नीगंज से ट्रांसपोर्ट नगर तक स्थित सभी सात अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउन्सिल (आईजीबीसी) द्वारा ‘प्लैटिनम रेटिंग’ प्रदान की गई है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से किसी भी निर्माण परियोजना को दी जाने वाली सर्वोच्च मान्यता है। कानपुर मेट्रो के दोनों कॉरिडोरों के पूर्ण होने से न केवल ट्रैफिक की भीषण समस्या से राहत मिलेगी, बल्कि शहर के बढ़ते कार्बन फुटप्रिंट को भी कम किया जा सकेगा। इससे उत्तर प्रदेश के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले शहर की अर्थव्यवस्था को नई गति और ऊर्जा मिलेगी।
(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप
