
– ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में 15 दिवसीय अर्थशास्त्र विषय पर रिफ्रेशर कोर्स
प्रयागराज, 16 सितम्बर (Udaipur Kiran) । मालवीय मिशन शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र, ईश्वर शरण पीजी कॉलेज प्रयागराज में मंगलवार से यूजीसी एवं शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत 15 दिवसीय अर्थशास्त्र विषय का रिफ्रेशर कोर्स प्रारंभ हुआ। मुख्य वक्ता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के कुलपति प्रोफेसर तपन कुमार शांडिल्य ने नई शिक्षा नीति 2020 पर प्रकाश डालते हुए उच्च शिक्षा में हो रहे परिवर्तनों पर चर्चा की।
प्रो. तपन कुमार ने मंगलवार को ‘अर्थशास्त्र में समकालीन प्रवृत्तियां और विश्लेषणात्मक उपकरण : सिद्धांत, नीति और व्यवहार’ विषय पर आधुनिक अर्थशास्त्र के महत्व काे लेकर बल दिया। उन्हाेंने बताया कि किस प्रकार मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग अर्थशास्त्र में किया जा सकता है।
उन्होंने व्यावहारिक अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता समझाई, जो लोगों के वास्तविक व्यवहार से संबंधित है। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है और यही अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने हरित जीडीपी को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने गिग वर्कर्स की समस्याओं का उल्लेख करते हुए उनकी आय बढ़ाने, पेंशन तथा बीमा जैसी सुविधाओं की व्यवस्था पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य आमजन के जीवन को सशक्त बनाना चाहिए।
भीमराव अंबेडकर महाविद्यालय, आगरा की प्रोफेसर पूनम सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तनों पर चर्चा की और उनके प्रभावों का विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि मांग, उत्पादन, रोजगार और व्यापार के बीच समन्वय स्थापित किया जाना आवश्यक है, ताकि पूंजी का सही उपयोग हो सके। उन्होंने उदारीकरण से पहले और बाद में हुए संरचनात्मक परिवर्तनों की तुलना प्रस्तुत की। उन्होंने औद्योगिक नीतियों द्वारा लाए गए परिवर्तनों पर प्रकाश डाला और कृषि क्षेत्र के महत्व को रेखांकित किया, जो आज भी सर्वाधिक रोजगार प्रदान करता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. सुरजीत मजूमदार ने आर्थिक सिद्धांत और समकालीन चुनौतियों पर अर्थशास्त्र के एक अनुशासन के रूप में विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित किया। बताया कि 17वीं शताब्दी के आरंभ में इस विषय की अवधारणा राजनीतिक अर्थव्यवस्था के रूप में की गई थी, जो 18वीं शताब्दी में धीरे-धीरे एक स्वतंत्र अनुशासन के रूप में उभरा। उन्होंने स्पष्ट किया कि किस प्रकार अर्थशास्त्र राजनीतिक अर्थव्यवस्था की जड़ों से विकसित होकर एक अधिक औपचारिक विज्ञान के रूप में स्थापित हुआ। इसके बाद उन्होंने नव शास्त्रीय अर्थशास्त्र के विकास पर चर्चा की। उन्होंने अभाव और चयन की मूल अवधारणाओं पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एम.एम.टी.टी.सी. के निदेशक एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने कहा कि भारतीय अर्थशास्त्र की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। कौटिल्य जैसे महान अर्थशास्त्रियों ने इसे एक संरचित रूप प्रदान किया। उन्होंने अर्थशास्त्र को केवल अर्थव्यवस्था तक सीमित न रखकर सुशासन और जनकल्याण का मार्गदर्शक भी बनाया। इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए आज आधुनिक भारत की आर्थिक नीतियाँ और शोध निरंतर विकसित हो रहे हैं।
सेंटर के सहायक निदेशक डॉ मनोज कुमार दूबे ने प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि इस केंद्र से यह 43वां कार्यक्रम चल रहा है और यह हमारे लिए गौरव का क्षण है। कार्यक्रम की रूपरेखा एवं उपस्थितजनों का स्वागत रिफ्रेशर कोर्स के संयोजक डॉ. वेद प्रकाश मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सह संयोजक डॉ. हर्षमणि सिंह ने किया। उद्घाटन कार्यक्रम में देश के 20 राज्यों से लगभग 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
