जम्मू, 15 सितंबर (Udaipur Kiran) ।
जम्मू-कश्मीर बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट कॉन्फ्रेंस ने कलाबन गांव में हुए भूस्खलन से बेघर हुए परिवारों को लेकर सरकार के लापरवाह रवैये की कड़ी आलोचना की है। संगठन का कहना है कि घटना को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी प्रभावित परिवारों को उचित राहत और आश्रय नहीं मिल पाया है।
जानकारी के अनुसार, 9 सितम्बर को हुए भूस्खलन में करीब 70 परिवारों के 300 से 400 लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए। कई लोग अपना सामान तक नहीं निकाल पाए। प्रभावितों को पंचायत घरों में रखा गया है, जहां न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही शौचालय, जिससे महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को भारी दिक्कत हो रही है।
चेयरमैन और पूर्व कुलपति डॉ. शहज़ाद अहमद मलिक ने कहा कि करोड़ों रुपये खर्च कर सामुदायिक भवन तो बनाए गए, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर वे बंद पड़े हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब लोग बेघर हैं तो ऐसे भवन क्यों नहीं खोले गए।
डॉ. शहज़ाद ने कहा कि यह त्रासदी न केवल घर उजाड़ गई, बल्कि लोगों की आजीविका, मवेशी, घर का सामान और बच्चों की किताबें तक छीन ले गई। उन्होंने अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन प्रशासन पीड़ितों को असुविधाजनक इमारतों में ठहराकर उनकी गरिमा छीन रहा है।
उन्होंने सभी राजनीतिक नेताओं से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर पीड़ितों के लिए काम करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ़ विधायक की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि चुनाव लड़ने वाले अन्य नेताओं की भी जिम्मेदारी बनती है।
हालांकि सरकार ने एसडीएम को राहत कार्यों की निगरानी का जिम्मा दिया है, लेकिन उनके पास अपने संसाधन और फंड नहीं हैं। डॉ. शहज़ाद ने तत्काल धनराशि जारी करने और समुचित राहत व पुनर्वास पैकेज की मांग की। उन्होंने कहा कि हाल के बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं ने साबित कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर का हर क्षेत्र संवेदनशील है और यदि दीर्घकालिक योजना नहीं बनी तो लोगों का भरोसा प्रशासन से उठ जाएगा।
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(Udaipur Kiran) / अश्वनी गुप्ता
