

“सबमें भगवान है और भगवान में सब है” यह भाव ही भारतीय जीवन दर्शन का सार
इंदौर, 14 सितंबर (Udaipur Kiran) । “भारत का अस्तित्व भक्ति और आत्मीयता के भाव पर आधारित है। यही भारत का वास्तविक भाव है। जब तक हमारे जीवन और समाज में सर्वत्र चेतन्यता और पवित्रता का भाव रहा, तब तक दुनिया में सुख और शांति का साम्राज्य रहा। भारत ने कभी किसी को दबाया नहीं, पूरी दुनिया को सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान दिया।” ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इंदौर प्रवास के दौरान ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में व्यक्त किए। वे पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल की नर्मदा परिक्रमा संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘परिक्रमा-कृपासार’ के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे।
नर्मदा परिक्रमा– श्रद्धा और साधना का प्रतीक
डॉ. भागवत ने कहा कि नर्मदा परिक्रमा केवल यात्रा नहीं है, यह भारत की श्रद्धा का प्रतीक है। हमारे देश में कर्मवीरों और तर्कवीरों की परंपरा रही है, लेकिन इनके साथ श्रद्धा और विश्वास की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि दुनिया वास्तव में विश्वास पर चलती है। जनरल मोटर्स जैसी कंपनियां भी आपसी भरोसे पर खड़ी हैं। भारत की संस्कृति की जड़ें भी ठोस आधार और प्रत्यक्ष अनुभूतियों पर टिकी हैं। यहाँ की आस्था कल्पना नहीं है, बल्कि प्रत्यक्ष प्रमाणों पर आधारित है, जिनका अनुभव साधना और प्रयोग से होता है।
भवानी-शंकर का भाव और भारतीय दर्शन
सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि हमारे यहां श्रद्धा और विश्वास को भवानी-शंकर के रूप में पूज्य स्थान दिया गया है। सत्य और सुख बाहर कहीं नहीं है, उसका मूल अपने भीतर है। हमारे पूर्वजों ने सुख की आंतरिक खोज की और उस यात्रा में उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ। यही कारण है कि हमारे शास्त्र एक ही ब्रह्म को सबमें मानते हैं। बाहरी विविधता केवल आभास है, जबकि शाश्वत स्तर पर सबमें एकत्व है। “सबमें भगवान है और भगवान में सब है,” यह भाव ही भारतीय जीवन दर्शन का सार है।
‘मैं और मेरा’ से आगे बढ़ने की जरूरत
उन्होंने आगे कहा कि जीवन में ‘मैं और मेरा’ का भाव एक सीमा तक ही स्वीकार्य है। इसके आगे साधना और त्याग से मनुष्य को स्वयं को व्यापक चेतना से जोड़ना पड़ता है। साधना के अनेक मार्ग हमारे ऋषि-मुनियों ने बताए हैं। नर्मदा परिक्रमा भी एक प्रकार की साधना है, जो व्यक्ति को अपने भीतर झांकने और आत्मबोध कराने का अवसर देती है। नर्मदा मैया सबकी है, वह योग्यता नहीं देखती, केवल भाव और भक्ति देखती है।
तर्क, विज्ञान और श्रद्धा का संतुलन
डॉ. भागवत ने चिंता जताई कि आज भक्ति और भाव की कमी से परिवार, समाज, पर्यावरण और यहां तक कि मानसिक जीवन तक में विकृतियां बढ़ रही हैं। सुख-शांति का मार्ग केवल भक्ति भाव से ही संभव है। उन्होंने कहा कि दुनिया धर्म से चलती है और धर्म के रक्षण के लिए आत्मीयता, अपनापन और भक्ति का होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि तर्क और शास्त्रार्थ में हमारा देश किसी से पीछे नहीं है। लेकिन, जीवन का संचालन श्रद्धा और विश्वास से ही होता है। आज भले ही कई लोग वैज्ञानिक दृष्टि की बात करते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि भी प्रत्यक्ष प्रमाण की मांग करती है। भारत की श्रद्धा ऐसी है, जिसमें प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं। इन्हें अनुभव करना हो तो साधना और प्रयोग करने पड़ते हैं। इसी कारण हमारे यहां श्रद्धा और विश्वास का मूर्त रूप भवानी-शंकर के रूप में सामने आया। बिना श्रद्धा और विश्वास के ईश्वर का साक्षात्कार संभव नहीं है।
स्वार्थ और अहंकार से उपजा संघर्ष
डॉ. भागवत ने वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज दुनिया में संघर्ष और टकराव का कारण केवल अहंकार है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह अकेला आगे बढ़े और दूसरा पीछे रह जाए। यही निजी स्वार्थ और अहंकार विश्व संघर्ष की जड़ है। इसके विपरीत भारतीय परंपरा सबको साथ लेकर चलने और सबमें भगवान देखने की रही है।
जीवन एक नाटक, असली पहचान आत्मा
उन्होंने जीवन को एक नाटक की संज्ञा दी। कहा कि हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होती है, लेकिन अंत में उसकी वास्तविक पहचान आत्मा ही होती है। ज्ञानी होकर निष्क्रिय रहना जीवन का संतुलन बिगाड़ देता है। जैसे बाज और कबूतर की कहानी सिखाती है कि ज्ञान और कर्म दोनों आवश्यक हैं, वैसे ही जीवन में भी संतुलन जरूरी है।
वैश्विक भौतिकवाद पर कटाक्ष
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने आज की भौतिकवादी प्रवृत्तियों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “पहले दर्जी गला और जेब काटते थे, लेकिन अब पूरी दुनिया यही काम कर रही है।” उनका संकेत वैश्विक प्रतिस्पर्धा और स्वार्थपरक प्रवृत्तियों की ओर था, जिसने आपसी विश्वास को कमजोर कर दिया है।
संतों और नेताओं की उपस्थिति
इस अवसर पर उपस्थित संत महामंडलेश्वर श्री ईश्वरानंद उत्तमस्वामीजी ने भी नर्मदा परिक्रमा को दिव्य अनुभव बताते हुए कहा कि परिक्रमा में केवल जल, वायु, आकाश या अग्नि ही नहीं, बल्कि शरीर का खून तक समर्पित होता है। यह यात्रा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आत्मा और प्रकृति के बीच गहरा जुड़ाव है। उन्होंने हल्के अंदाज में कहा कि राजनीति में ऊपर चढ़ने के लिए भी परिक्रमा करनी पड़ती है।
नर्मदा को बेचना नहीं चाहता- प्रह्लाद पटेल
पुस्तक विमोचन अवसर पर मंत्री प्रह्लाद पटेल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्होंने पहले पुस्तक छपने से मना कर दिया था, क्योंकि उनका उद्देश्य नर्मदा को ‘बेचना’ नहीं था। नर्मदा हमारी माता है, नदियां हमारी धरोहर हैं। पुस्तक से होने वाली आय गौसेवा और परिक्रमा वासियों के कल्याण में ही लगेगी। उन्होंने कहा कि नर्मदा यात्रा केवल व्यक्तिगत साधना नहीं, बल्कि समाज के लिए संदेश है कि हमें अपनी नदियों और विरासत की रक्षा करनी है।
कार्यक्रम का आयोजन और वातावरण
कार्यक्रम का आयोजन नर्मदाखंड सेवा संस्थान, मंगरोन (दमोह) द्वारा किया गया। आयोजन की शुरुआत भारतमाता, माँ नर्मदा, लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर और श्री श्रीबाबाश्री को पुष्पांजलि अर्पित करने और नर्मदाष्टकम् से की गई। इस दौरान नर्मदा परिक्रमा पर आधारित भावपूर्ण चलचित्र भी प्रदर्शित किया गया, जिसे देखकर उपस्थित श्रोता भावविभोर हो उठे।
विशेष अतिथियों की उपस्थिति
इस अवसर पर मंच पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, मंत्री विश्वास सारंग, कैलाश विजयवर्गीय, तुलसीराम सिलावट, इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव, विधायक गोलू शुक्ला सहित अनेक जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। डॉ. भागवत का स्वागत प्रह्लाद पटेल ने माँ नर्मदा का चित्र भेंट कर किया। सरसंघचालक ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
