Uttrakhand

पूर्वजों की सौंपी साहित्यिक व सांस्कृतिक विरासत पहचान और सभ्यता की नींव है: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री ‘उत्तराखंड दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान समारोह कार्यक्रम में सम्मानित करते।’

-सरकार दो ‘साहित्य ग्रामों ‘ की करेगी स्थापना

-उत्तराखंड को साहित्यिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा

देहरादून, 14 सितंबर (Udaipur Kiran) । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पूर्वजों की ओर से सौंपी गई साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत केवल हमारे अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि हमारी पहचान और सभ्यता की नींव हैं। इसलिए इन्हें संरक्षित रखना हम सभी का नैतिक उत्तरदायित्व है। राज्य सरकार उत्तराखंड भाषा संस्थान के माध्यम से राज्य के बिखरे हुए साहित्य को संरक्षित, संकलित और पुनर्स्थापित करने के लिए ठोस कार्य कर रही है।

मुख्यमंत्री धामी रविवार काे सर्वे चौक स्थित आईआरडीटी सभागार में हिंदी दिवस के अवसर आयाेजित उत्तराखंड दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री धामी ने साहित्यकार शैलेश मटियानी, गिरीश तिवारी, शेरदा अनपढ़, हीरा सिंह राणा को मरणोपरान्त उत्तराखंड दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित किया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने सोमवारी लाल उनियाल, अतुल शर्मा को भी उत्तराखंड दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान से सम्मानित किया।

इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के लिए भी सतत प्रयास कर रही हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी समृद्ध भाषायी विरासत से जुड़ी रहें। यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने वाले महान साहित्यकारों को ‘दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान’ से सम्मानित करने का अवसर प्राप्त हो रहा है। उन्होंने उन सभी साहित्य साधकों को शुभकामनाएं दीं जो अपनी रचनात्मकता से सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने हिंदी को आत्मा की अभिव्यक्ति और साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए कहा कि साहित्यकार समाज की संवेदनाओं के सच्चे मार्गदर्शक होते हैं। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कवियों और रचनाकारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि रचनात्मकता हमारे शास्त्रों और परंपराओं का भी मूल आधार रही है। मुख्यमंत्री धामी ने उत्तराखंड की समृद्ध साहित्यिक परंपरा का उल्लेख करते हुए सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, शिवानी, शैलेश मटियानी, गिर्दा, शेर दा ‘अनपढ़’, और ‘हिरदा’ जैसे रचनाकारों को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया, जिन्होंने उत्तराखंड के जीवन, संघर्ष और संस्कृति को अपनी रचनाओं में जीवंत किया। उन्होंने कहा कि समकालीन रचनाकारों में अतुल शर्मा, प्रसून जोशी, और उनियाल जी जैसे साहित्यकार इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है। उन्होंने बताया कि ‘उत्तराखंड भाषा संस्थान’ के माध्यम से हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के विकास के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार की ओर से ‘उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान’, ‘साहित्य भूषण’, ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कारों के माध्यम से साहित्यकारों को सम्मानित किया जा रहा है और नई पीढ़ी के लिए रचनात्मक लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन कर उन्हें प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने समारोह में घोषणा की कि “दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान” के अंतर्गत साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों को 5 लाख की पुरस्कार राशि प्रदान की जा रही है। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि सरकार की ओर से दो ‘साहित्य ग्राम’ स्थापित किए जा रहे हैं, जिनमें साहित्यकारों के लिए आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। इससे उत्तराखंड को एक साहित्यिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में अहम प्रगति होगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम कक्षा 6 से लेकर डिग्री और यूनिवर्सिटी स्तर तक के विद्यार्थियों के लिए रचनात्मक लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रहे हैं, जिसके माध्यम से 100 से अधिक युवा रचनाकारों को पुरस्कृत भी किया गया है। हिंदी दिवस के अवसर पर हमने प्रदेश के हाईस्कूल और इण्टर परीक्षा में हिंदी में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले मेधावी छात्र-छात्राओं सहित विभिन्न भाषायी प्रतियोगिताओं में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने वाले 176 विद्यार्थियों को भी सम्मानित किया है। हमारी सरकार ने बीते दो वर्षों में 62 साहित्यकारों को उनकी पुस्तकों के प्रकाशन के लिए अनुदान भी प्रदान किया है। इस वर्ष भी पुस्तक प्रकाशन को प्रोत्साहित करने के लिए 25 लाख रुपये के विशेष बजट का प्रावधान किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत का साहित्य अपनी वैचारिक संपन्नता के कारण सदियों से वैश्विक पहचान रखता आया है, लेकिन दुर्भाग्यवश पूर्व में कई साहित्यिक विरासतें उपेक्षित रहीं। अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश की सांस्कृतिक और साहित्यिक पहचान को नई दिशा और सम्मान मिल रहा है। इसी प्रेरणा से राज्य सरकार स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के लिए भी सतत प्रयास कर रही है।

मुख्यमंत्री ने सभी साहित्यकारों, कवियों और उपस्थित जनों से आह्वान किया कि वे अपनी रचनात्मकता से उत्तराखंड और भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत को और अधिक समृद्ध बनाएं। कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, विधायक खजान दास, सचिव नीरज खैरवाल, भाषा सस्थान की निदेशक जसविंदर कौर व प्रदेश के कई गणमान्य अतिथि, शिक्षाविद्, साहित्यकार, छात्र एवं संस्कृति प्रेमी उपस्थित रहे।

(Udaipur Kiran) / राजेश कुमार

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