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बलोच नेता ने कहा- अफगानिस्तान मान्यता दे और पख्तून समर्थन करे

क्वेटा, 13 सितम्बर (Udaipur Kiran) । अमेरिका द्वारा बलोचिस्तान मुक्ति सेना को आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने के बाद बलोचिस्तान मुक्ति आंदोलन (फ्री बलोचिस्तान मूवमेंट) ने अपने संघर्ष को नया आयाम देने की मुहिम तेज कर दी है। आंदोलन के कार्यकर्ता मीर यार बलोच ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपील जारी कर अफगान पख्तूनों से बलोच आंदोलन के समर्थन का आह्वान किया। उन्होंने अफगानिस्तान से बलोचिस्तान गणराज्य को मान्यता देने की मांग की और कहा कि इससे पाकिस्तान की दशकों पुरानी घुसपैठ और आर्थिक दबाव को समाप्त किया जा सकता है।

मीर यार बलोच ने कहा कि बलोच और अफगान भाईचारा सदियों पुराना है, जिसे अंग्रेजों की थोप दी गई डूरंड रेखा ने कृत्रिम रूप से विभाजित किया। उनके अनुसार, यह केवल सीमा नहीं बल्कि उपनिवेशवादी शक्तियों का गहरा घाव है जिसने दोनों देशों की साझा नियति को तोड़ा। उन्होंने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि पंजाबी जनरल्स ने अफगानिस्तान को अस्थिर कर उसकी मिट्टी को “शांति का कब्रिस्तान” बना दिया और बलोचिस्तान पर क्रूर कब्जा मजबूत किया।

बलोच नेता ने कहा कि अफगानिस्तान और बलोचिस्तान का दुश्मन एक ही है और दोनों की नियति भी जुड़ी हुई है। ऐसे में अफगान राष्ट्र को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि बलोच संघर्ष में सक्रिय कदम उठाकर साझेदारी करनी चाहिए। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि दोनों मिलकर पाकिस्तान की जीवन रेखाओं (कराची बंदरगाह से लेकर चमन और हेलमंद तक) को रोक दें, तो कब्जे पर पलटवार किया जा सकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि बलोच राष्ट्र ने हमेशा अफगान भाइयों के साथ वफादारी दिखाई है। जब बलोचिस्तान संकट में था, अफगानिस्तान ने नैतिक और राजनीतिक समर्थन दिया और बलोचों ने भी डूरंड रेखा के पार अपने घर पख्तून भाइयों के लिए खुले रखे। अब समय है कि अफगानिस्तान इतिहास के इस आह्वान को स्वीकार करे और बलोचिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन करे।

मीर यार बलोच ने बलोचिस्तान की आज़ादी को केवल बलोचों की नहीं बल्कि अफगानिस्तान की जीवन रेखा बताया। उनके अनुसार, स्वतंत्र बलोचिस्तान अफगानिस्तान के लिए व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और संप्रभुता का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि हिरब्येर मारी ने पहले ही अफगानिस्तान को ग्वादर बंदरगाह को विश्व का प्रवेश द्वार बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिससे अफगानिस्तान को व्यापार का मुक्त रास्ता मिल सकता है।

उन्होंने पख्तूनों को भी आश्वासन दिया कि यदि वे दक्षिण पख्तूनिस्तान का गठन करना चाहते हैं या अफगानिस्तान में विलय करना चाहते हैं, तो बलोच राष्ट्र उनके फैसले का सम्मान और समर्थन करेगा। उनके अनुसार, पख्तूनों की आवाज़ बलोचों के लिए पवित्र है और उनकी आज़ादी बलोच आत्मनिर्णय के संघर्ष से जुड़ी हुई है।

अंतमें उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अफगानिस्तान बलोचिस्तान के इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगा, या पाकिस्तान को एक बार फिर काबुल जलाने और दोनों राष्ट्रों को गुलाम बनाने देगा।

(Udaipur Kiran) /नवनी करवाल

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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