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ज्ञान भारतम् मिशन भारत की पांडुलिपि धरोहर को जीवित परंपरा के रूप में करेगा पुनर्जीवितः गजेन्द्र सिंह शेखावत

ज्ञान भारतम् के मौके पर केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत
केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत अपना संबोधन देते हुए

– तीन दिवसीय ज्ञान भारतम् सम्मेलन के समापन समारोह में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए पारित किया गया दिल्ली घोषणा पत्र

नई दिल्ली, 13 सितंबर (Udaipur Kiran) । केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने शनिवार को कहा कि ज्ञान भारतम् प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रेरित पहल भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा में नया प्राण फूंकने का प्रयास है। ‘श्रुति’ और ‘स्मृति’ के बाद लिखित रूप में संरक्षित यह ज्ञान अब संस्कृति मंत्रालय द्वारा ज्ञान भारतम् मिशन के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि यह केवल शैक्षणिक अभ्यास न होकर एक सांस्कृतिक नवजागरण है। पांडुलिपियों का संरक्षण, प्रकाशन और उपयोग तभी सार्थक होगा जब यह आम जनता से जुड़ेगा। गजेन्द्र सिंह शेखावत शनिवार को विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान भारतम सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

इस मौके पर संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल समापन रिपोर्ट प्रस्तुत की। संयुक्त सचिव अमिता प्रसाद सरभाई ने दिल्ली घोषणा-पत्र का औपचारिक वाचन किया, जिसे सर्वसम्मति से अपनाया गया। इस घोषणा ने भारत को विश्व की सबसे समृद्ध पांडुलिपि परंपराओं की भूमि घोषित करते हुए विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण में संरक्षण, डिजिटलीकरण और प्रसार का संकल्प लिया।

इस मौके पर केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि दिल्ली घोषणा-पत्र कोई साधारण दस्तावेज़ नहीं बल्कि एक सामूहिक संकल्प है, जिसकी शुरुआत भव्य है और भविष्य में और भी महत्वपूर्ण होगी। यह हमारे लिए एक प्रतिज्ञा है।

अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि

हमारा उद्देश्य स्पष्ट है- पांडुलिपियों का संरक्षण, प्रकाशन और आधुनिक तकनीक एवं सोशल मीडिया के माध्यम से इन्हें सुलभ बनाना ताकि हर भारतीय अपने पूर्वजों की इस बौद्धिक धरोहर पर गर्व कर सके। जब तक यह ज्ञान सामान्य जन के व्यवहारिक जीवन से नहीं जुड़ेगा, तब तक आंदोलन अधूरा रहेगा। अतः हम सब मिलकर सुनिश्चित करें कि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे और भारत पांडुलिपि परंपरा में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर हो।

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में सचिव, संस्कृति मंत्रालय विवेक अग्रवाल ने बताया कि सभी आठ कार्य-समूहों ने गहन विचार-विमर्श किया और अपनी प्रस्तुतियां प्रधानमंत्री के समक्ष रखीं। उन्होंने कहा कि भारत की पांडुलिपियां मानवता की विकास-यात्रा के पदचिह्न हैं। यह केवल राजवंशों के अभिलेख नहीं, बल्कि विचारों, आदर्शों और मूल्यों के भंडार हैं, जिन्होंने सभ्यता को आकार दिया। ज्ञान भारतम् मिशन भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना की आवाज़ बनेगा।

इस अवसर पर इंदिरा गांधी कला केन्द्र(आईजीएनसीए) के सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यह सम्मेलन केवल शैक्षणिक विमर्श का मंच ही नहीं, बल्कि भारत की पांडुलिपि धरोहर को सुरक्षित कर भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रेरणादायक कदम है। उन्होंने बताया कि अधिकांश प्रतिभागी बिना किसी आमंत्रण या प्रायोजन के स्वयं की प्रेरणा से आए, जिनमें 70 प्रतिशत से अधिक युवा थे। यही ऊर्जा और समर्पण इस पहल को जनांदोलन का रूप देते हैं। ज्ञान भारतम् परियोजना निदेशक डॉ. अनिर्बान दाश ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

उल्लेखनीय है कि संस्कृति मंत्रालय ने ‘ज्ञान भारतम्’ की शुरुआत की है। यह एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय पहल, जिसका उद्देश्य भारत की पांडुलिपि धरोहर का संरक्षण, डिजिटलीकरण और प्रसार करना है। इस अवसर पर मंत्रालय ने 11–13 सितम्बर 2025 तक विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘ज्ञान भारतम्’ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन का विषय था- “पांडुलिपि धरोहर के माध्यम से भारत की ज्ञान परंपरा की पुनः प्राप्ति।

सम्मेलन में भारत और विदेशों से आए 1,100 से अधिक विद्वानों, विशेषज्ञों, संस्थानों और सांस्कृतिक हस्तियों ने भाग लिया। यह मंच संवाद, विमर्श और विचार-विनिमय के माध्यम से पांडुलिपियों के संरक्षण और उनके विश्व पटल पर प्रसार की दिशा तय करने हेतु एक सहयोगी मंच के रूप में उभरा। तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान 12 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कार्य समूहों की प्रस्तुतियों में भाग लिया और सम्मेलन को संबोधित किया।

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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी

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