Madhya Pradesh

एम्स भोपाल में फंगल डिजीज अवेयरनेस वीक–2025 का आगाज, 15 से 19 सितम्बर तक चलेगा जागरूकता अभियान

एम्‍स भोपाल

– “थिंक फंगस, सेव लाइव्स” है मुख्य संदेश

भोपाल, 13 सितंबर (Udaipur Kiran) । भारत जैसे विशाल और विविध आबादी वाले देश में फंगल संक्रमण एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या है, जिसे अक्सर लोग गंभीरता से नहीं लेते। अधिकांश लोगों को यह लगता है कि फंगस केवल सतही संक्रमण है, जो त्वचा, नाखून या बालों तक सीमित है, लेकिन यह कई बार जीवन के लिए घातक रूप भी ले सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय शोध बताते हैं कि हर साल लाखों लोग गंभीर फंगल संक्रमणों की चपेट में आते हैं और समय पर उपचार न मिलने पर उनकी जान तक चली जाती है। विशेषकर वे लोग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, जैसे मधुमेह के मरीज, कैंसर रोगी, अंग प्रत्यारोपण से गुज़रे लोग या लंबे समय तक आईसीयू में भर्ती मरीज, उनके लिए फंगल संक्रमण जानलेवा साबित हो सकता है। इस पृष्ठभूमि में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल रोगियों के लिए एक प्रयास लेकर आया है।

दरअसल एम्स भोपाल के सूक्ष्मजंतु विज्ञान विभाग ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्य प्रदेश के सहयोग से फंगल डिज़ीज़ अवेयरनेस वीक 2025 का आयोजन 15 से 19 सितम्बर तक किया है। इस पहल का मूल उद्देश्य यही है कि फंगल संक्रमणों के बढ़ते बोझ के प्रति जागरूकता फैलाई जाए, लोगों को इसके लक्षणों और खतरों के बारे में जानकारी दी जाए और स्वास्थ्यकर्मियों को इनके प्रबंधन और त्वरित उपचार के लिए प्रशिक्षित किया जाए। संस्थान ने इस आयोजन का मुख्य संदेश रखा है– “थिंक फंगस, सेव लाइव्स” यानी फंगस के बारे में सोचिए और जीवन बचाइए।

इस अभियान को लेकर सूक्ष्मजंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) देबाशीष विश्वास और संस्थान के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) माधवानंद कर ने संयुक्त रूप से कहा कि फंगल संक्रमण एक वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है और भारत जैसे देश के लिए यह और भी गंभीर समस्या है। डॉ. विश्वास का मानना है कि फंगल रोगों की सही पहचान और निदान ही मरीज की जान बचा सकता है। उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस जैसे संक्रमण हमें पहले ही सबक सिखा चुके हैं कि जब तक समाज और चिकित्सक दोनों स्तर पर जागरूकता नहीं बढ़ेगी, तब तक इसका असर कम नहीं होगा। वहीं, डॉ. कर ने कहा कि एम्स भोपाल का यह दायित्व है कि वह न केवल मरीजों का इलाज करे, बल्कि समाज में सही संदेश भी पहुंचाए। इस अभियान का लक्ष्य है कि लोग सतर्क रहें, शुरुआती लक्षणों को अनदेखा न करें और समय पर डॉक्टर तक पहुंचें।

पूरे सप्ताह चलने वाले इस जागरूकता कार्यक्रम में सेमिनार, कार्यशालाएँ, पोस्टर प्रदर्शनी और संवाद सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें मेडिकल छात्रों और चिकित्सकों को फंगल संक्रमण की पहचान और नवीनतम उपचार पद्धतियों की जानकारी दी जाएगी। साथ ही मरीजों और उनके परिजनों को सरल भाषा में समझाया जाएगा कि किस तरह यह संक्रमण फैलता है और किस तरह समय रहते रोका जा सकता है। सोशल मीडिया और अस्पताल परिसर में चल रहे अभियान का उद्देश्य भी यही है कि “थिंक फंगस, सेव लाइव्स” का संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे।

उल्‍लेखनीय है कि इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर ह्यूमन एंड एनिमल माइकोलॉजी की रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में हर साल लगभग डेढ़ करोड़ लोग गंभीर फंगल रोगों का शिकार होते हैं और उनमें से कई लाख लोगों की मौत हो जाती है। भारत जैसे देश में तो सटीक आँकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं, जिससे चुनौती और बढ़ जाती है।विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल जागरूकता सप्ताह मना लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसे एक निरंतर अभियान के रूप में आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। डॉक्टर विश्वास और डॉक्टर कर दोनों ने ही कहा है कि आने वाले वर्षों में फंगल रोगों पर शोध को बढ़ावा देना, नए और सस्ते उपचार विकल्प उपलब्ध कराना और ग्रामीण स्तर तक स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करना बहुत जरूरी होगा।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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