श्रीनगर, 12 सितंबर (Udaipur Kiran) । जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक माँ का अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी का पहला अधिकार है और यह अधिकार तब तक नहीं छीना जा सकता जब तक कि उसे मान्यता प्राप्त कानूनी आधार पर अयोग्य घोषित न कर दिया जाए। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बच्चों के कल्याण और स्थिरता को सभी कस्टडी संबंधी निर्णयों का मार्गदर्शन करना चाहिए।
न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने यह फैसला श्रीनगर के चौथे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ अपील स्वीकार करते हुए सुनाया जिसमें दो नाबालिगों की कस्टडी उनके पिता को सौंपने का निर्देश दिया गया था।
यह मामला दोनों पक्षों के बीच एक वैवाहिक विवाद के बाद उठा जो तलाक में समाप्त हुआ। कतर की एक अदालत ने पहले माँ को बच्चों की कस्टडी दी थी जबकि पिता को उनसे मिलने का अधिकार दिया गया था। 2022 में अपने बच्चों के साथ कश्मीर जाने के बाद माँ को पिता द्वारा शुरू की गई नई कस्टडी कार्यवाही का सामना करना पड़ा जिसने
यह मामला दोनों पक्षों के बीच एक वैवाहिक विवाद के बाद उठा जो तलाक में समाप्त हुआ। कतर की एक अदालत ने पहले माँ को बच्चों की कस्टडी दी थी जबकि पिता को उनसे मिलने का अधिकार दिया गया था। 2022 में अपने बच्चों के साथ कश्मीर जाने के बाद माँ को पिता द्वारा शुरू की गई नई कस्टडी कार्यवाही का सामना करना पड़ा जो बच्चों को वापस विदेश ले जाना चाहता था।
न्यायालय ने संरक्षकता और अभिरक्षा के बीच स्पष्ट अंतर करते हुए कहा कि जहाँ पिता को स्वाभाविक अभिभावक माना जाता है वहीं अभिरक्षा का संबंध दैनिक देखभाल, स्नेह और पालन-पोषण से है। न्यायालय ने अभिरक्षा को माता-पिता में से किसी एक का विशेषाधिकार न मानकर बच्चे का अधिकार बताया और कहा कि इस्लामी न्यायशास्त्र बच्चे के प्रारंभिक वर्षों में माँ को प्राथमिकता देता है।
तथ्यों की जाँच करने पर न्यायमूर्ति वानी ने पाया कि बच्चे पहले ही कश्मीर में अपनी माँ के साथ बस चुके हैं और उन्हें उस परिवेश से हटाना उनके कल्याण के लिए ठीक नहीं होगा। इसलिए न्यायालय ने पिता को अभिरक्षा प्रदान करने के आदेश को रद्द कर दिया।
साथ ही पीठ ने पिता को श्रीनगर की अपनी यात्राओं के दौरान एक बार में पाँच दिनों तक और ईद जैसे विशेष अवसरों पर अंतरिम अभिरक्षा की अनुमति दी बशर्ते कि इससे बच्चों की शिक्षा या आराम में कोई बाधा न आए।
सना आफताब बनाम मोहतशेम बिल्लाह मलिक नामक अपील का निपटारा इस छूट के साथ किया गया कि भविष्य में परिस्थितियाँ बदलने पर दोनों पक्षों को सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति होगी।
(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता
