
जबलपुर, 12 सितंबर (Udaipur Kiran) । हाईकोर्ट ने फिरौती के सबूत न होने के कारण 2013 के राजेश जैन अपहरण मामले में आरोपितों दी गई उम्रकैद की सजा घटाकर सात साल कर दी। कोर्ट ने आरोपितों पर आईपीसी की धारा 364-ए नहीं लागू की। इसके साथ ही 10हजार रुपए जुर्माने की सजा भी सुनाई है।
उल्लेखनीय है कि 25 जुलाई को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था जिसे 10 सितंबर को सुनाया गया है। जस्टिस विवेक अग्रवाल और देव नारायण मिश्रा की डिविजनल बेंच ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों को आईपीसी की धारा 364-ए (फिरौती के लिए अपहरण) के तहत उम्रकैद की सजा दी थी, जबकि सबूतों के आधार पर यह धारा लागू नहीं होती।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 364-ए के लिए यह साबित होना जरूरी है कि अपहरण के दौरान न केवल फिरौती मांगी गई, बल्कि पीड़ित को जान से मारने की धमकी दी गई हो या उसे गंभीर चोट पहुंचाई गई हो। इस मामले में अपहरण और बंधक बनाना तो सिद्ध हुआ। लेकिन, न तो पीड़ित को चोट पहुंचाई गई और न ही कोई ठोस सबूत मिले कि जान से मारने की धमकी दी गई थी। इसलिए आरोपियों की सजा को धारा 365 (साधारण अपहरण) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत बदला गया।
गौरतलब है कि 24 अगस्त 2013 को कारोबारी राजेश जैन को प्रॉपर्टी डील के बहाने खंडवा से इंदौर बुलाया गया और वहीं से उनका अपहरण कर लिया गया। भदौरिया गैंग ने अपहरण के बाद पांच करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी थी। मध्य प्रदेश और हरियाणा पुलिस की संयुक्त टीम ने दबिश देकर व्यापारी को छुड़ाया था।
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक
