
प्रयागराज, 10 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे के पितृत्व का पता लगाने के लिए डीएनए जांच रूटीन तरीके से नहीं कराई जा सकती।
कोर्ट ने कहा पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। रूटीन में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियां हों और ठोस आधार होने पर ही कोर्ट जांच करा सकती है। न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की एकलपीठ ने गाजीपुर निवासी रामचंद्र राम की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया है।
गाजीपुर के जमानियां थाना क्षेत्र में घटना 29 मार्च 2021 को हुई थी। अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 452, 342, 506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया है।
याची की तरफ से कहा गया कि पीड़िता व उसके बच्चे का डीएनए परीक्षण कराया जाए ताकि अदालत के समक्ष सही तथ्य उपलब्ध हो सकें। यह मांग इस आधार पर की गई कि बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ था, लेकिन वह पूरी तरह से विकसित था। कोर्ट ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार यह टिप्पणी की है कि न्यायालयों को पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के लिए प्रार्थना वाले आवेदन पर विचार करते समय सावधानी व सतर्कता बरतनी चाहिए। क्योंकि इसके गम्भीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
