
नई दिल्ली, 09 सितंबर (Udaipur Kiran) । दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक पढ़ी लिखी और स्वतंत्र महिला किसी विवाहित पुरुष के साथ लगातार सहमति से संबंध बनाती है, तो उसे शोषण नहीं कहा जा सकता। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने यौन प्रताड़ना के आरोपित के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए ये टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था रेप और यौन शोषण के आरोपों वाले एफआईआर के बोझ तले दबी हुई है। इन मामलों में अक्सर शादी के झूठे वादे कर लंबे समय तक यौन प्रताड़ना के आरोप लगाए जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में बालिग पक्षकारों ने सहमति से यौन संबंध बनाए और जब किसी वजह से आपसी संबंध खराब हो गए तो रेप का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराए गए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे सभी आरोप यौन अपराधों के कानूनों के लक्ष्य और संविधान की न्याय देने की भावना के विपरीत होते हैं।
दरअसल, याचिकाकर्ता के खिलाफ महिला ने आरोप लगाया था कि शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। बाद में याचिकाकर्ता ने दूसरी महिला से शादी कर ली। कोर्ट ने कहा कि इसमें सीधा मामला सहमति से संबंध बनाने का है। इस मामले में रेप का आरोप तब लगाया जब शिकायतकर्ता के मुताबिक संबंध की परिणति नहीं हो पायी। कोर्ट ने कहा कि जब एक पढ़ी लिखी स्वतंत्र महिला किसी पुरुष की वैवाहिक स्थिति को जानने के बाद भी सहमति से संबंध बनाती है तो ये कानून को दिग्भ्रमित करने जैसा है।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / प्रभात मिश्रा
