
धमतरी, 8 सितंबर (Udaipur Kiran) ।पूर्वजों के सम्मान का पर्व पितृपक्ष प्रारंभ हो गया है। सुबह से ही घरों में विधि विधान से पूर्वजों का आह्वान कर भोग लगाया गया। पर्व के चलते तोरई व उड़द दाल की मांग बढ़ गई है। शास्त्रों के अनुसार साल के 15 दिनों को पितरों के लिए सुरक्षित किया गया है। इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग पितृ पक्ष भर स्वर्गीय हो चुके अपने बुजुर्गों का श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि साल के इन 15 दिनों में स्वर्गवासी हो चुके पितर अपनी मृत्यु की तिथि के अनुसार संसार में आते हैं। इसलिए प्रत्येक परिवार वालों द्वारा अपनी मृत्यु पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
तालाबों में अपने पितरों को कुश के माध्यम से जल अर्पण कर पूजा की गई। इसके बाद सुबह घर के आंगन में चावल के आटे से रंगोली बनाकर उस पर पीढ़ा रखा गया साथ ही लोटे के पानी में दातून रखकर पूर्वजों का आह्वान किया गया। इसके बाद पकवान व भोजन का भोग लगाया गया। ऐसी मान्यता है कि यदि पूर्वजों के लिए रखें इन पदार्थों को कौवा खा लेता है तो पूजा सार्थक मानी जाती है। पूर्वजों के पूजन में तोरई के पत्तों सब्जी व उड़द दाल का विशेष महत्व है। इसके चलते इन सामानों की मांग एकाएक बढ़ गई है। मार्केट में तोरई सब्जी की कीमत 80 रुपये तक पहुंच गई है।
जन्म के बाद से मानव के ऊपर होते हैं तीन प्रकार के ऋण:
विप्र विदवत परिषद के सदस्य पंडित राजकुमार तिवारी ने बताया कि पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात् उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं। हिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों को जल अर्पण करने से उनकी आत्माओं को तृप्ति मिलती है। जन्म के बाद से मानव के ऊपर तीन प्रकार के ऋण पितृ ऋण, देव ऋण व ऋषि ऋण होते हैं। उनमें से पितृ ऋण के रूप में ही पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा
