
जम्मू, 7 सितंबर (Udaipur Kiran) । अखनूर की धरती पर आज का दिन शब्दों और संवेदनाओं का संगम बनकर आया, जब विख्यात डोगरी साहित्यकार स्वर्गीय पद्मदेव सिंह ‘निर्दोष’ जी की इकतीसवीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। नगर के मध्य स्थित निर्दोष चौक पर सुबह से ही लोगों का आना शुरू हो गया और सिविल सोसायटी अखनूर की ओर से आयोजित इस सभा में श्रद्धा और स्मरण का प्रवाह देर शाम तक बना रहा। यह केवल एक साहित्यकार को स्मरण करने का अवसर नहीं था, बल्कि डोगरी भाषा और संस्कृति की आत्मा को महसूस करने का भी गहन क्षण था।
सभा में नगर के गणमान्य नागरिक, साहित्यप्रेमी और समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। हर चेहरा नम्र भाव से झुका हुआ था और हर नज़र स्मृतियों में डूबी थी। वक्ताओं ने ‘निर्दोष’ जी के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे केवल लेखक नहीं थे, बल्कि समाज की चेतना को दिशा देने वाले युगांतरकारी व्यक्तित्व थे। उनकी लेखनी ने डोगरी भाषा को नई ऊँचाइयाँ दीं और लोकजीवन के सुख-दुख को इतनी सहजता से शब्दों में पिरोया कि वह हर दिल की आवाज़ बन गई।
सभा में कई प्रतिभागियों ने अपने संस्मरण भी साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह ‘निर्दोष’ जी का साथ पाकर उन्हें साहित्य और जीवन की गहरी समझ मिली। उनकी विनम्रता, सहजता और विचारों की स्पष्टता आज भी प्रेरणा देती है। यह सुनते ही वातावरण भावुक हो उठा और कई आँखें नम हो गईं।
इस मौके पर श्रद्धांजलि सभा में प्रमुख रूप से नरेंद्र सिंह भाऊ, एडवोकेट धर्मपाल गुप्ता, डॉ. ग़फूर अहमद, के. डी. भगत, थाना प्रभारी राजेश जसरोटिया, अशोक मिश्रा, जंग बहादुर सिंह, शाम सिंह भाऊ, राजपाल शर्मा, एडवोकेट विष्णु कांत शर्मा, चेतन शर्मा, परशोतम सिंह पवार, कुंवर शक्ति सिंह, रत्न भारद्वाज, अशोक कुमार, जगपाल पनोच, अनव लंगर, ऋषि कुमार पावा, कैप्टन जुगल गुप्ता, सोमनाथ शर्मा, शिहान देव सिंह, राहुल लंगर और जुगल किशोर उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में सिविल सोसायटी अखनूर के पदाधिकारियों में कार्यकारी अध्यक्ष डी. एन. अबरोल, उपाध्यक्ष नरेंद्र लंगर, महासचिव रितेश गुप्ता, सचिव अशोक मगोतरा, रंजीत रोमेत्रा, अंशुल गुप्ता और पवन कुमार भारती भी उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर इस आयोजन को केवल एक औपचारिक सभा नहीं रहने दिया, बल्कि इसे एक जीवंत स्मृति बना दिया, जहाँ शब्दों की गूंज और संवेदनाओं की छाया साथ-साथ महसूस की जा सकती थी।
कार्यक्रम के समापन पर सभी ने एक स्वर में संकल्प लिया कि पद्मदेव सिंह ‘निर्दोष’ जी के आदर्शों और साहित्यिक धरोहर को सदैव जीवित रखा जाएगा। उनकी रचनाओं की ज्योति नई पीढ़ी तक पहुँचाई जाएगी, और डोगरी भाषा व संस्कृति को उसी गरिमा व शक्ति के साथ आगे बढ़ाया जाएगा, जैसी उन्होंने अपने जीवन में दिखाई। यह श्रद्धांजलि सभा केवल एक लेखक को याद करने का अवसर नहीं रही, बल्कि यह स्मरण कराती रही कि सच्चे साहित्यकार का जीवन कभी समाप्त नहीं होता। उनकी लेखनी, उनके विचार और उनकी प्रेरणा समय की हर सीमा को पार करके आने वाले कल को आलोकित करती रहती है।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
