Madhya Pradesh

भोपाल : जनजातीय संग्रहालय में ‘संभावना’ गतिविधि में हुई लोक और जनजातीय नृत्य की प्रस्तुति

मप्र जनजातीय संग्रहालय में नृत्य की प्रस्तुति
मप्र जनजातीय संग्रहालय में नृत्य की प्रस्तुति

भोपाल, 7 सितम्बर (Udaipur Kiran) । राजधानी भोपाल स्थित मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रति सप्‍ताह नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना का आयोजन किया जा रहा है। इस रविवार को टीकमगढ़ के शैलेंद्र सिंह सिसोदिया एवं साथी कलाकारों द्वारा मोनिया नृत्य और डिण्डोरी के जियालाल एवं उसके साथी कलाकारों द्वारा गोण्ड जनजातीय करमा नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

बुंदेलखंड अपने आप में बहुत से लोकनृत्य और लोकसंगीतों को संजोए हुए है। इन्हीं में से एक है मोनिया नृत्य। बुंदेलखंड का यह लोकनृत्य कार्तिक माह में अमावस्या से पूर्णिमा तक नृत्य किया जाता है। ग्वाला समुदाय अपने पशुओं को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। मुख्यतः ग्वाला समुदाय का नृत्य है मोनिया। छोटे बच्चे कृष्ण का रूप धर कर हाथ में लाठी लेकर घर-घर जाते हैं और बांसुरी की लय, ढोलक की थाप पर विभिन्न हस्त पद संचालन के साथ नृत्य करते हैं और अन्न प्रसादी प्राप्त करते हैं। बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ यह नृत्य किया जाता है। गांवों में छोटी छोटी टोली बनाकर यह नृत्य किया जाता है।

वहीं, करमा कर्म की प्रेरणा देने वाला नृत्य है। ग्रामवासियों में श्रम का महत्व है श्रम को ही ये कर्म देवता के रूप में मानते हैं। पूर्वी मध्यप्रदेश में कर्म पूजा का उत्सव मनाया जाता है। उसमें करमा नृत्य किया जाता है परन्तु विन्ध्य और सतपुड़ा क्षेत्र में बसने वाले जनजातीय कर्म पूजा का आयोजन नहीं करते। नृत्य में युवक-युवतियां दोनों भाग लेते हैं, दोनों के बीच गीत रचना की होड़ लग जाती है। वर्षा को छोड़कर प्रायः सभी ऋतुओं में गोंड जनजातीय करमा नृत्य करते हैं। यह नृत्य जीवन की व्यापक गतिविधि के बीच विकसित होता है, यही कारण है कि करमा गीतों में बहुत विविधता है। वे किसी एक भाव या स्थिति के गीत नहीं है उसमें रोजमर्रा की जीवन स्थितियों के साथ ही प्रेम का गहरा सूक्ष्म भाव भी अभिव्यक्त हो सकता है। मध्य प्रदेश में करमा नृत्य-गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। सुदूर छत्तीसगढ़ से लगाकर मंडला के गोंड और बैगा जनजातियों तक इसका विस्तार मिलता है।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में हर रविवार दोपहर 02 बजे से आयोजित होने वाली इस गतिविधि में प्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति देखने को मिलती है।

(Udaipur Kiran) / उम्मेद सिंह रावत

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