Madhya Pradesh

मानवता का सबसे बड़ा रुप है दूसरों का सहारा बननाः पंडित प्रदीप मिश्रा

भागवत कथा सुनाते हुए पंडित प्रदीप मिश्रा
भागवत कथा

– शिवमय भागवत कथा में उमड़ा आस्था का सैलाब

सीहोर, 07 सितम्बर (Udaipur Kiran) । दूसरों के दुखों को समझना और उनके प्रति दया का भाव रखना ही मानवता का मूल है। नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करना और उनके दुख-दर्द को कम करने के लिए कार्य करना। मानवता अपने आप में एक ऐसा धर्म है जो लोगों को बेहतर बनने, नैतिकता और प्रेम का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित करता है। भगवान पर विश्वास करने वाला कभी निर्धन नहीं हो सकता है, सबसे बड़ा धन हमारा संतोष और संतुष्टि है। जिसके बल पर हम किसी भी परस्थितियों में अपना जीवन बसर कर सकते हैं।

उक्त विचार मध्य प्रदेश के सीहोर शहर में बड़ा बाजार स्थित अग्रवाल धर्मशाला में लगातार 26 सालों से अग्रवाल महिला मंडल के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय शिवमय भागवत कथा के विराम दिवस पर रविवार को प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने व्यक्त किए। कथा सुनने के लिए रविवार को सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। और कथा सुबह आठ बजे से 11 बजे तक जारी रही, इसके पश्चात कथा का श्रवण करने वालों को विठलेश सेवा समिति की नगर इकाई के द्वारा भोजन-प्रसादी का वितरण किया गया।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि भगवान का भजन करने वाला, जाप करने वाला कभी निर्धन नहीं हो सकता, सुदामा तो भगवान के मित्र थे, यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ निस्वार्थ थी। उन्होंने कभी उनसे सुख, साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए चावलों में भगवान श्रीकृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भगवान पर विश्वास और भरोसा मजबूत होना चाहिए। जिस प्रकार माता रुकमणी को अपने कृष्ण पर विश्वास था कि वह आएंगे और उनके मित्र सुदामा को आस्था थी कि मैं भगवान का ध्यान और मनन करता रहूंगा तो मेरे परिवार को वैभव प्राप्त होगा। ईश्वर पर आस्था रखना चाहिए जो भी भक्त ईश्वर पर आस्था और विश्वास करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। निर्धन होने के पश्चात भी भगवान कृष्ण से मिलने से पहले वह भगवान को एक मुट्टी चावल देने गया था, लेकिन भगवान ने उसकी सभी मनोकामनाएं बिना मांग के पूरी कर दी।

गीता हमें कर्तव्य का बोध देती

पंडित मिश्रा ने कहाकि गीता के पहले अध्याय में श्रीकृष्ण मौन थे। अर्जुन श्रीकृष्ण से लगातार प्रश्न कर रहे थे। युद्ध न करने के निर्णय को सही बताते हुए अपने तर्क दे रहे थे। लेकिन, श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुछ नहीं कहा। श्रीकृष्ण का मौन देखकर अर्जुन की आंखों से आंसू बहने लगे तब भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। महाभारत युद्ध के पहले दिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अपना रथ युद्ध भूमि के बीच में ले जाने के लिए कहा था। श्रीकृष्ण ने रथ आगे बढ़ाया और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। अर्जुन ने जब कौरव सेना में अपने कुटुम्ब के लोग देखे तो वह निराश हो गए थे। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं युद्ध नहीं चाहता। मैं संन्यास लेना चाहता हूं। अपने कुंटुम्ब के लोगों को मारकर मिलने वाला राज्य मेरे लिए किसी काम का नहीं है। अर्जुन ने जब युद्ध के लिए मना किया तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। श्रीमद् भगवद् गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो लोग कर्म नहीं करते हैं, अपने कर्तव्य से भागते हैं, वे कायर होते हैं। ऐसे लोगों को घर-परिवार और समाज में सम्मान नहीं मिलता, बल्कि इन्हें अपमानित होना पड़ सकता है।

अग्रवाल महिला मंडल ने किया आभार व्यक्त

भागवत कथा के विराम दिवस के मौके पर अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष रुकमणी रोहिला ने लगातार 26 सालों से जारी कथा में सहयोग करने वाले सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहाकि रविवार को समापान हुई इस दिव्य और भव्य आयोजन में विधायक सुदेश राय, नगर पालिका अध्यक्ष प्रिंस राठौर, जिला प्रशासन, विठलेश सेवा समिति की नगर इकाई और महिला मंडलों के अलावा सभी क्षेत्रवासियों ने सहयोग किया था। जिसके कारण कथा का लाभ जन-जन तक पहुंचा है।

(Udaipur Kiran) तोमर

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