Uttar Pradesh

एशिया का सबसे बड़ा जुलूस-ए-मोहम्मदी कानपुर से निकला, लाखों ने मिलकर मनाई ईद-ए-मिलादुन्नबी

जुलूस में शामिल हजारों लोगों का छयाचित्र

कानपुर, 05 सितम्बर (Udaipur Kiran) । पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब के जन्मदिवस ईद-ए-मिलादुन्नबी की खुशियों में शुक्रवार को कानपुर से एशिया का सबसे बड़ा जुलूस-ए-मोहम्मदी मगरिब की नमाज के बाद निकाला गया। जो परेड ग्राउंड से शुरू होकर शहर की तमाम गलियों और मार्गों से गुजरते हुए यह विशाल जुलूस शाम तक फूलबाग मैदान पहुंचा।

जुलूस को ज्वाइंट पुलिस आयुक्त आशुतोष सिंह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। सबसे आगे जमीयत उलमा के सदस्य रहे, जबकि उनके पीछे तंजीमें हाथों में हरे झंडे और लाउडस्पीकर पर नात पढ़ते हुए शामिल हुईं। जगह-जगह स्टेज बनाकर विभिन्न संगठनों और धर्मों के लोगों ने जुलूस का स्वागत किया।

जुलूस में शामिल अनुयायी या रसूल अल्लाह के नारे लगाते और पैगंबर-ए-इस्लाम की शान में नात पढ़ते चल रहे थे। जैसे-जैसे जुलूस आगे बढ़ता गया, लोगों की भीड़ बढ़ती चली गई। अनुमान है कि इस साल भी करीब पांच लाख से अधिक लोग इसमें शामिल हुए।

करीब 14.5 किलोमीटर लम्बा यह जुलूस परेड, नई सड़क, पेंचबाग, तलाक महल, बेगमगंज, कंघी मोहाल, नाला रोड, चमनगंज, बांस मंडी, मूलगंज, शिवाला, पटकापुर होते हुए फूलबाग पहुंचा। खास बात यह रही कि जब जुलूस का अगला सिरा फूलबाग पहुंचा, तब भी इसका पिछला सिरा परेड ग्राउंड से निकल रहा था। फूलबाग मैदान में इकट्ठे होकर सभी अनुयायियों ने नमाज अदा की और नबी-ए-पाक को याद करते हुए जुलूस का समापन किया।

जुलूस-ए-मोहम्मदी केवल मुस्लिम समाज तक सीमित नहीं रहा। इसमें बड़ी संख्या में हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय के लोग भी शामिल हुए और स्वागत किया। शहर भर में गुलाब की पंखुड़ियों से जुलूस का अभिनंदन हुआ, जिससे माहौल और भी खुशनुमा बन गया।

इस जुलूस की नींव अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुए आंदोलन से जुड़ी है। वर्ष 1913 में अंग्रेजों ने मेस्टन रोड पर मस्जिद मछली बाजार का वुजूखाना तोड़ दिया था, जिससे हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय नाराज हो गए। अगले वर्ष 1914 में 12 रबी उल अव्वल के दिन परेड ग्राउंड से एकजुट होकर लोगों ने जुलूस निकाला, जो धीरे-धीरे जुलूस-ए-मोहम्मदी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। तब से हर साल यह परम्परा जारी है और आज यह जुलूस एशिया का सबसे बड़ा जुलूस माना जाता है।

जमीयत उलमा के प्रदेश उपाध्यक्ष मौलाना अमिननुल हक अब्दुल्लाह ने बताया कि यह जुलूस केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एकता, भाईचारे और अंग्रेजों के खिलाफ साझा संघर्ष की याद भी है। मेस्टन रोड पर आज भी मंदिर और मस्जिद आमने-सामने हैं, और जुलूस उन्हीं के बीच से गुज़रता है—एकता और गंगा-जमुनी तहज़ीब का संदेश देता हुआ।

(Udaipur Kiran) / रोहित कश्यप

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