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अनिश्चित काल तक विधेयक लंबित रखने के मामले में संविधान बेंच की सुनवाई 2 सितंबर को

सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 28 अगस्त (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर गुरुवार काे पांचवे दिन की सुनवाई पूरी कर ली। संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई 2 सितंबर को करेगा।

सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता है, ये काम कोर्ट का है कि कोई विधेयक संविधान का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि किसी विधेयक को रोककर रखना या विधानसभा को वापस करना अंतर्निहित हैं और राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा को वापस किए बिना उसे रोक नहीं सकते हैं। तब कोर्ट ने कहा कि क्या राज्यपाल विधानसभा से दोबारा विधेयक भेजे जाने पर राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को रोके रख सकते हैं। तब सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल का काम विधेयक के प्रतिकूल होने या न होने से मतलब रखना नहीं है। अगर राज्यपाल को लगता है कि विधेयक ज्यादा ही प्रतिकूल है तो वो राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए रिजर्व रख सकते हैं। सिंघवी ने आगे कहा कि अगर राज्यपाल राष्ट्रपति के पास विधेयक को भेजते हैं तो वो मंत्रिपरिषद की सलाह से।

आज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति केवल ये चाहती हैं कि क्या संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है। मेहता ने कहा कि राज्य सरकार मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। ऐसे में राज्य सरकार अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग नहीं कर सकती है। मेहता ने कहा कि राज्य सरकार ये नहीं कह सकती है कि वो नागरिकों के अधिकारों की रक्षक है।

बता दें कि 26 अगस्त क सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि अगर कोई राज्यपाल 2020 के विधेयक को 2025 में भी सहमति नहीं देता है तो क्या कोर्ट तब भी शक्तिहीन की तरह देखता रहेगा। तब मध्यप्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील नीरज किशन कौल ने कहा था कि ऐसी स्थिति में इसे संसद पर फैसला करने के लिए छोड़ देना चाहिए। कौल ने कहा कि ऐसी बहस की शुरुआत इससे नहीं की जा सकती है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल विवेकाधिकार का दुरुपयोग करेंगे।

सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि संविधान के निर्माताओं ने व्यवस्था बनाई थी कि किसी राज्य विधानसभा से पारित विधेयक को केंद्र सरकार रोक सकती है, लेकिन वो विवेकाधिकार का मामला है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत विधेयक को अस्वीकार करने पर कोई समय सीमा नहीं है। तब चीफ जस्टिस ने पूछा था कि क्या केंद्र सरकार को राज्य सूची के विधेयक को भी रोकने का अधिकार है। तब साल्वे ने कहा कि हां। तब चीफ जस्टिस ने बीआर अंबेडकर के भाषण का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि आपात स्थिति को छोड़कर केंद्र सरकार अपनी परिधि में ही काम करेगी। सुनवाई के दौरान जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि अगर राज्यपाल के पास इतनी शक्ति है तो वो धन विधेयक को भी रोक सकते हैं।

पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल अनिश्चित काल तक विधेयक को लंबित रखते हैं तो विधायिका मृतप्राय हो जाएगी। कोर्ट ने पूछा था कि तब क्या ऐसी स्थिति में भी कोर्ट शक्तिहीन है बता दें कि संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। बता दें कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने का अधिकार है।

(Udaipur Kiran) /संजय

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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी

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