
उज्जैन,26 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश ग्रंथ में कई बार उल्लेख किया है। बाबर के सेनापति मीर बांकी ने 1528 में जिस मंदिर को ध्वस्त किया था, जिस पर अब भव्य राम मंदिर का पुनर्निर्माण हो चुका है। उसका निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने ही करवाया था। साथ ही अयोध्या में 240 नए मंदिरों तथा 60 प्राचीन मंदिरों का निर्माण भी सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया था। यह बात मंगलवार को महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ में आयोध्या और सम्राट विक्रमादित्य पर आधारित चित्रकला प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने कही।
उन्होंने कहा कि वेदों में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है। महर्षि पाणिनी वैदिक संस्कृत विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. शुभम शर्मा ने कहा कि प्रबन्ध कोष में अपने राज्य को राम राज्य बनाने की अभिलाषा में सम्राट विक्रमादित्य ने राज्य में स्थान-स्थान पर मंदिर बनवाए। उन्होने श्रीराम की चरण पादुका के अन्वेषण में अयोध्या में उत्खनन कार्य करवाया और अयोध्या में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। जहां पर राजा राम का राज्याभिषेक हुआ, उस मंंदिर में सम्राट विक्रमादित्य की तीन मूर्तियां स्थापित हैं।
अयोध्या में ही विक्रमादित्य ने 84 स्तंभों वाला राम-सीता, लक्ष्मण की का एक भव्य मंदिर बनवाया था। डॉ.राजपुरोहित ने कहा कि स्कन्द पुराण में सरयू तट पर दूसरी अमरावती के समान अयोध्या नगरी है। मानव सभ्यता की पहली पुरी होने का पौराणिक गौरव अयोध्या को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। भारतवर्ष के महाकाव्यों में रामायण और महाभारत के महान नायकों-श्रीराम और श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कोई भी दूसरा व्यक्ति विक्रमादित्य के समान जन साधारण में समाहित नहीं है। विदेशी आक्रमण के विरोध में उनके द्वारा देश की स्वाधीनता की रक्षा, उनकी सैनिक एवं राजनीतिक उपलब्धियां, उनका आदर्श शासन, न्याय, विवेक तथा साहित्य एवं कला प्रमुख है।
इस दौरान विक्रम विश्वविद्यालय के वरिष्ठ कार्यपरिषद सदस्य राजेशसिंह कुशवाह ने सम्राट विक्रमादित्य के कार्यकाल में निर्मित अयोध्या के मंदिरों का उल्लेख करते हुए मध्यप्रदेश शासन द्वारा अयोध्या और सम्राट विक्रमादित्य पर होने वाली आगामी कार्ययोजाना को बताया। उन्होनें जानकारी दी कि इस संबंध में अनेक शिलालेख एवं पुरातात्विक प्रमाण प्राप्त हुए थे, जिन्हें तत्कालिन समय में न्यास द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किए गए थे। इसको लेकर एक चित्रकला प्रदर्शनी तैयार की गई है।
उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शनी प्रतिदिन प्रात: 10 से सायं 6 बजे तक प्रतिदिन 26 अगस्त से 30 सितंबर तक शोधार्थियों, विद्यार्थियों, विद्वानों तथा जनसमूह के लिए खुली रहेगी। अतिथि स्वागत संस्थान के अकादमी निदेशक डॉ. रमण सोलंकी ने किया। ओएसडी गोपालचन्द्र डाड, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, विवेक अग्रवाल उपस्थित थे।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल
