
सहरसा, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) ।
पितृपक्ष के दौरान पितरों की तृप्ति एवं पर्व त्योहार कर्मकांड में शुद्धिकरण के लिए कुश का उपयोग किया जाता है। जो भाद्रपद कृष्ण आमावस्या के लिए उखाड़ा जाता है।शनिवार को विभिन्न वन क्षेत्र एवं जंगल जाकर कुश संग्रह किया जाता है।
इस संबंध में शिवनगर ग्रामीण राघव झा,माधव झा,अनिल कुमार झा,अवधेश झा,हलखोरी यादव, नारायण कुमर,अशेसर ठाकुर,हेमचंद्र झा एवं पंडित अशोक कुमार झा ने बताया कि आज कुशी आमावस्या के दिन कुशोत्पाटन किया जा रहा है।भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन वर्ष भर के लिए पुरोहित नदी, पोखर, जलाशय आदि से कुशा घास एकत्रित कर घर में रखते हैं। कुशा घास का प्रयोग पूजा-पाठ एवं कर्मकांड कराने में किया जाता है।
कुशोत्पाटिनी अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।कुशोत्पाटिनी अमावस्या का ऐसी मान्यता है कि इस दिन कुशा नामक घास को उखाड़ने से यह वर्ष भर कार्य करती है तथा पूजा पाठ कर्म कांड सभी शुभ कार्यों में आचमन में या जाप आदि करने के लिए कुशा इसी अमावस्या के दिन उखाड़ कर लाई जाती है।
हिन्दू धर्म में कुश के बिना किसी भी पूजा को सफल नहीं माना जाता है। इसलिए इसे कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। यदि भाद्रपद माह में सोमवती अमावस्या पड़े तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। किसी भी पूजन के अवसर पर पुरोहित यजमान को अनामिका उंगली में कुश की बनी पवित्री पहनाते हैं।तब जाकर पूर्ण शुद्धिकरण के साथ कर्मकांड संपन्न होता है।उन्होंने बताया कि कुश उत्पाटन के लिए विशेष सावधानी बरती जाती है।वही मंत्रोच्चार के साथ जड़ सहित कुश उखाड़ा जाता है।जो देव पितर हितार्थ कर्मकांड में प्रयोग किया जाता है।जिसमें गौ कर्णी कुश को सर्वोत्तम माना जाता है।वही श्मशान घाट एवं रास्ते पर उगा कुश उखाड़ना निषिद्ध माना गया है।
(Udaipur Kiran) / अजय कुमार
