
कोलकाता, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । पत्नी उत्पीड़न की परिभाषा को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अजय कुमार मुखर्जी ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पति-पत्नी के बीच किसी दिन झगड़ा होना या पत्नी को चांटा, थप्पड़ अथवा डंडे से मारना अपने आप में निष्ठुरता (क्रूरता) नहीं माना जा सकता।
अदालत के मुताबिक, दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामलों में तभी कार्रवाई उचित होगी, जब गंभीर शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना के लगातार सबूत मौजूद हों।
यह मामला बर्दवान की एक महिला से जुड़ा था, जिसने अपने पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ मानसिक और शारीरिक अत्याचार तथा स्त्रीधन हड़पने का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराई थी। महिला का कहना था कि शादी के बाद से ही उस पर लगातार अत्याचार होता रहा और सात जुलाई 2022 को उसके पति ने उसे बर्दवान शहर में पीटा। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसका पूरा स्त्रीधन रोक लिया गया। दूसरी ओर पति ने अदालत में दावा किया कि उसकी पत्नी लंबे समय से विवाहेतर संबंध में है और उसी व्यक्ति के साथ बर्दवान में देखी गई थी। पति के वकील ने दलील दी कि यह शिकायत समयसीमा से बाहर है, क्योंकि कानून के मुताबिक धारा 498A के तहत ऐसे मामले में तीन साल के भीतर मामला दर्ज होना चाहिए।
अदालत ने पति की दलील स्वीकार करते हुए एफआईआर को खारिज कर दिया और यह भी टिप्पणी की कि आरोप प्रतिशोध की भावना से लगाए गए हैं। न्यायमूर्ति मुखर्जी ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A में क्रूरता का अर्थ केवल दो ही परिस्थितियों से है— पहली, पति या ससुराल वालों का ऐसा व्यवहार जो पत्नी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करे, और दूसरी, ऐसा आचरण जिससे पत्नी के जीवन, अंग-प्रत्यंग या मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पहुंचे। दहेज, पैसे या संतान की मांग को लेकर दबाव डालना भी निष्ठुरता की श्रेणी में आता है।
इस आदेश के साथ अदालत ने संकेत दिया कि सतही विवाद या एक-दो दिन की घटनाओं को आधार बनाकर पति या ससुराल वालों पर घरेलू हिंसा या दहेज उत्पीड़न के गंभीर आरोप नहीं लगाए जा सकते। ऐसे मामलों में अदालत का दखल तभी होगा, जब निरंतर और गंभीर उत्पीड़न के ठोस प्रमाण सामने आएं।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
